कवितापद्य साहित्य

एक अनुभूति!

माहौल में कुछ अजीबियत कुछ सूनापन है

आज खाली खाली मेरे ही मन का दर्पण है

 

हवाएं बह रही हैं, रात ढल चुकी है

खामोशी की चिंगारी लबों पर रुकी है

अभी कुछ देर से सांसें गिन रहा हूँ

कभी चल रही हैं कभी थम रही हैं

अकस्मात् कैसा ये बदलता जीवन है

आज खाली खाली मेरे ही मन का दर्पण है

 

आज अँधेरा बहुत ही घना है

जाने किस मिटटी से आसमां बना है

आज तारों ने ओढ़ी है खामोशी

बादलों के परों पर चुपचाप मदहोशी

सिहरती ठिठकती झांझ सुनाई देती हैं

ना जाने कैसा हो रहा सम्मोहन है

आज खाली खाली मेरे ही मन का दर्पण है

 

पर्वत के शिखरों में सन्नाटा छाया है

देखो संदेसा ले झोंका सा आया है

पेड़ों की ठिठकन से नींद नदी की खुली

जैसे फिज़ा में है अलसियत सी है घुली

झड़ते कुछ पत्तों की आवाज ने चीरा

सो चुकी घासों का सध चूका सा सपन है

आज खाली खाली मेरे ही मन का दर्पण है

___सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

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