कवितापद्य साहित्य

क्रांतिकारी अनुभूति

आओ बुझती चिंगारी को फिर से हम अंगार बनाएं

नए विचारो नयी शक्ति को आओ हम उदगार बनाएं

नयी चेतना नवसपनो को हम सबके जीवन में देकर

राष्ट्रभक्ति को परम धर्म और जीवन का आधार बनाएं

 

टूटी नौका कब तक चलती, लहरों से टकराती कैसे

लक्ष्य कहाँ तक पा सकते हैं टूटे छूटे सपने ऐसे

उन्हें जोड़ निर्माण करें हम नवयुग नवसंसार बनाएं

आओ बुझती चिंगारी को फिर से हम अंगार बनाएं

 

बूझे दीयों ने दिया अँधेरा, अभिमन्यु को सबने घेरा

धर्म रह गया बाँट जोहता और अधर्म का सबपर डेरा

प्रत्यंचा फिर अर्जुन बनकर गांडीव की टंकार बनाएं

आओ बुझती चिंगारी को फिर से हम अंगार बनाएं

___सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

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