उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 39)

35. सुल्तान और नायब

”काफूर, दिल्ली सल्तनत के जांबाज सिपहसालार दक्खन पर तुम्हारी विजय ने हमारा सिर फर्ख से बुलंद कर दिया है। दक्खन से उस काफिर रामदेव के साथ उसके राज्य की खूबसूरत दोशीजाओं को हमारे हरम की खातिर लाकर तुमने शहजादे खिज्र के निकाह के जलसे की खुशियाँ दोगुनी कर दी हैं। हमें तुम्हें सल्तनत का वजीर मुकर्रर करते हैं।“

मलिक काफूर सुल्तान के आगे सिर झुकाते हुए, ”सुल्तान का रहमो करम बस इसी तरह हमारे सिरों पर बना रहे।“

”काफूर, पर इस खुशी के मौके पर भी एक काँटा हमारे जेहन को लगातार छलनी करता रहता है। हमें रात को मुकम्मल नींद भी नहीं आती।“

”क्या हुआ सुल्तान, काफूर के रहते आप परेशान रहे यह मुमकिन नहीं। कौन है, वह काँटा आप बयान करें?“

”वह जालौर का राजकुमार विक्रम है जो शाही हरम से शहजादी फिरोजा को लेकर अपने राज्य में जा छिपा है।“

”उस धृष्ट की यह मजाल, आप हुक्म दें जिल्लेइलाही, मैं आज ही उस काफिर के होश ठिकाने के लिए रवाना होता हूँ।“

”नहीं काफूर, तुम बहुत खास हो। तुम्हें वापस दक्खन की ओर जाना है, वारंगल का काफिर प्रतापरुद्र का सिर नीचा करना है पर उससे पहले तुम्हें शाही हरम में भी कुछ काम मुकम्मल करने हैं। शहजादी फिरोजा अपनी दासी गुलेबहिश्त को चकमा देकर फरार हुई है। हम गुलेबहिश्त को ही उसे हरम में वापस लाने के लिए भेजेंगे।“

”सुल्तान, मुझे हरम में किसी खास काम के बारे में बता रहे थे?“

”हाँ काफूर, तुम्हें काफिर रामदेव को शाही हरम के दर्शन करवाना है उसे दिखाना है उनकी शहजादियाँ और रानियाँ यह किस तरह हमारी बांदियों की तरह रात-दिन हमारी चाकरी करती हैं। हाँ, रामदेव को ये लगे जैसे उसने यह सब अनजाने में देख लिया है।“

”सुल्तान, आपने देवलदेवी के मुस्कबिल के बाबत क्या फैसला लिया, क्या आप उसे मलिका बनाएँगे?“

अलाउद्दीन हाथ मलते हुए, ”काफूर, यह खूबसूरत शहजादी पद्मिनी की तरह हमारे हाथों से फिसल गई है। अफसोस हम उस जवां शहजादी को भोग नहीं पा रहे हैं।“

”क्यों सुल्तान-ए-आला, कोई खास वजह?“

”हाँ, उस हर्राफा शहजादी ने पहली नजर में ही शहजादे खिज्र खाँ को अपना बिस्मिल बना दिया है। हम चंद रोज में ही उन दोनों का भी निकाह कर देंगे। अब तुम जाओ काफूर और हरम का बंदोबश्त करो।“

काफूर सुल्तान को सिजदा करके चला जाता है और सुल्तान दीवार पर टंगे एक चित्र को कामुक नजरों से देखने लगता है। यह चित्र देवगिरी की राजकुमारी छिताई का है।

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

One thought on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 39)

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक उपन्यास !

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