कविता

कविता : अब भोर हो गया

 

घर- आँगन, गली- गली में, शोर हो गया,
माँ कहती है जल्दी उठ, अब भोर हो गया।
चिड़ियाँ चहक रही पेड़ों पर, अब तक सोता है,
ठण्डी शीतल पवन कह रही, अब भोर हो गया।
अलसाई सी कलियों पर, भोरें झूम रहे हैं,
तितली भी मकरन्द चूसती, अब भोर हो गया।
पूरब में फूटी लाली, चाँद अस्त हो गया,
सूरज की किरणे कहती, अब भोर हो गया।
उल्लू भी अब चले गए हैं, खोह में सोने,
पनघट पर पनिहारिन कहती, अब भोर हो गया।
चूड़ी खनके, पायल बाजे, चहुँ और शोर हो गया,
जल्दी उठ ऐ पगले मन, अब भोर हो गया।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

One thought on “कविता : अब भोर हो गया

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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