आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 39)

वहाँ से श्री हिरानो मेरे लिए हीयरिंग रोड दिलवाने एक जगह ले गये जिसे इलैक्ट्रिकल सिटी (बिजली का नजर) कहा जाता है। वहाँ सभी दुकानों में बिजली को रोशनियों का ऐसा भारी प्रबन्ध था कि आँखें चौंधिया गयीं। अनेक दुकानें पार करते हुए श्री हिरानो मुझे एक हीयरिंग ऐड की दुकान पर ले गये। वहाँ हमें कई प्रकार के हीयरिंग ऐड दिखाये गये। परन्तु उनमें से कोई भी मुझे फिट नहीं बैठा। दूसरे जैसा मैं चाहता था वैसे हीयरिंग ऐड उनके पास नहीं थे और सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी कीमतें इतनी ऊँची थीं कि उन्हें खरीदना मेरे बूते की बात नहीं थी। इसलिए मैंने यह कहकर श्री हिरानो से छुट्टी ली कि आप चिन्ता न करें, मैं कल फिर यहाँ आकर देख लूँगा।

श्री हिरानो मुझे पाकिस्तान के श्री बट्ट के साथ छोड़कर चले गये। हम दोनों एक ही होटल में पास-पास के कमरों में रहते थे। वहाँ से हम दोनों पास की एक दुकान पर गये जहाँ कैमरे मिलते हैं। उसमें कैमरे तो अच्छे-अच्छे थे परन्तु उनकी कीमतें भारत के लिहाज से बहुत ज्यादा थीं यानी 2000 रू. से 10000 रुपये के बीच और वीडियो कैमरे तो और भी मंहगे थे। इसलिए मैंने केवल एक छोटा फ्लैश वाला कैमरा पसन्द किया, जो मुझे 15800 येन यानी लगभग 2200 रु. में पड़ा। यहाँ मुझे टैक्स नहीं देना पड़ा, क्योंकि यह ड्यूटी फ्री की दुकान थी। इस दुकान की एक बड़ी कमसिन और सुन्दर लड़की ने सारे कागज भरवाये। मेरा पासपोर्ट भी मांगा और एक जगह हस्ताक्षर कराना भूल गयी, तो उसी दुकान में नीचे मुझे ढूँढ़ती हुई आयी। वह शायद नयी-नयी सेल्स गर्ल बनी थी।

एक दूसरी दुकान से मैंने तीन रीलें भी खरीदीं। वे भी हमारे हिसाब से मँहगी थी। हमने वहाँ ऐसे वी.सी.आर. भी देखे जो राह चलते लोगों के चित्र उसी समय टी.वी. पर दिखा देते थे। इन मशीनों की कीमत लाखों रुपयों में थी।

इसके बाद हम वहाँ से चले और पहले हम टोकियो के चाँदनी चौक शिंजूकू गये। यहाँ भारी भीड़ रहती है। अनेक सिनेमा कैबरे हाउस, नाइट क्लब आदि हैं। ग्राहकों की तलाश में रहने वाली लड़कियों तथा दलालों से भी हमारा पाला पड़ा, जिनसे मैंने किसी तरह पिंड छुड़ाया। इस जगह की गलियाँ बनारस की गलियों की तरह जटिल है और यह कहावत मशहूर है कि असली टोकियोवासी वह है जो शिंजूकू में जाकर बिना भटके वापस निकल आये। भटक हम भी गये थे और एक जगह पर तो दो समूह बनकर बिछुड़ गये। परन्तु पूछ-पाछ कर रेलवे स्टेशन तक पहुँच गये। यहाँ का रेलवे स्टेशन शहर में ही नहीं पूरे जापान में सबसे बड़ा है ओर मजे की बात यह है कि सारा जमीन के भीतर है। शहर में उसके चारों ओर से लगभग 10-12 दरवाजे अलग-अलग निकलते हैं कई तो एकदम गली में। अतः जहाँ आपको जाना हो उसके ठीक पास वाले दरवाजे तक पहुँच जाने की कला जानना ही असली टोकियोवासी की पहचान है। किसी तरह पूछ-ताछ कर हम अपने स्टेशन ‘शिनागावा’ तक आये और आकर सो गये।

25.10.1990 (गुरुवार)

आज हमारे कार्यक्रम का अन्तिम दिन था। हम रोज काफी थक जाते थे। इसलिए इस बात से खुश थे कि आज हमें मुक्ति मिल जायेगी। आज ही हमें वह पुरस्कार दिया जाना था, जिसके लिए हमें बुलाया गया था। उत्तेजना से मेरा हृदय बहुत धड़क रहा था।

आज की कांफ्रेंस की थीम थी – ‘दुनिया में कम्प्यूटरीकरण को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाय।’ करीब 11 देशों ने इसमें अपने प्रतिनिधि भेजकर रिपोर्ट पेश की थीं कि उनके यहाँ इस दिशा में क्या-क्या किया गया है और आगे क्या करने की योजना है। इनमें पाकिस्तान, श्रीलंका, मैक्सिको, पेरू जैसे देश शामिल हुए थे, परन्तु अफसोस कि भारत का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। हमारी सरकार ही नहीं कम्प्यूटर सोसाइटी को भी आपसी झगड़ों से फुरसत नहीं मिलती, नहीं तो इस सम्मेलन में वरीयता देकर भाग लेना चाहिए था।

12 बजे तक एक-एक करके कई देशों के भाषण हुए। तब हमें पुरस्कार लेने के लिए बुलाया गया। स्वयं सी.आई.सी.सी. के चेयरमैन ने अपने हाथों से हमें सम्मान पत्र तथा एक-एक चमचमाता स्वर्ण कप भेंट में दिया, जिस पर हमारा नाम भी लिखा था। मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही थी और मैं स्वयं को उछलने से बड़ी मुश्किल से रोक पा रहा था। पुरस्कार के बाद हमें दो-दो मिनट तक बोलने का समय दिया गया। हमने अपने-अपने भाषण श्री हिरानो को पहले ही लिखकर दे दिये थे, ताकि यदि वे आवश्यक समझें तो दुभाषिये से सरल अनुवाद करा दें। परन्तु इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि मैंने अपना भाषण एक-एक शब्द धीरे-धीरे बोलते हुए पूरा किया, जो सबकी समझ में आ गया।

इसके बाद भोजन का कार्यक्रम था। अतः इस समय हमने अपने खूब फोटो खिचायें। मैंने श्री हिरानो तथा स्वर्ण कप के साथ अपना फोटो खिंचवाया। मेरा नया कैमरा इसमें बहुत काम आया।

भोजन में सबको एक-एक पैकेट दिया गया था जिसमें मांसाहारी भोजन था, जो मेरे किसी काम का नहीं था। इसलिए आज फिर श्री हिरानो मुझे अकेले नीचे रेस्तरां में ले गये। वहाँ मैने फिर वही चावल और शाकाहारी करी मंगायी, जिसे खाकर मैं तृप्त हुआ। अदरक प्याज तथा दो चीजों की कद्दूकस की हुई चटनी सी थी, जो बड़ी स्वादिष्ट थी। साथ में घिसा हुआ सलाद भी था जिसमें कई चीजें एक साथ थी। सबको खाकर मुझे आनन्द आया।

इसके बाद भाषणों का सिलसिला फिर चालू हुआ। इस कांफ्रेंस में विजिटिंग कार्डों का आदान- प्रदान खूब हुआ। पूरी दुनिया के देशों के सम्पर्क मेरे पास इकट्ठे हो गये हैं जो आगे बहुत काम आयेंगे।

कांफ्रेंस अभी एक दिन और चलनी थी, परन्तु हमारा कार्यक्रम आज ही समाप्त हो गया था, इसलिए सबके लिए प्रेसीडेन्ट होटल में पार्टी का प्रबन्ध किया गया था। वह उस जगह से केवल एक स्टेशन दूर था। हम वहाँ गये। पहले पीने-पिलाने का दौर चला। मैंने केवल पानी लिया।

वहीं सी.आई.सी.सी. की एक नयी कर्मचारी कु. नीमी (या निम्मी) से परिचय हुआ। बड़ी मुश्किल से मेरी बात उसकी और उसकी बात मेरी समझ में आ रही थी। उसने मुझे बताया कि उसी ने मेरे घर पर तथा आफिस में कई बार फोन किये थे और वह कुछ साफ नहीं सुन पायी, क्योंकि उधर काफी शोर हो रहा था। निम्मी ने इसी वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय कानून में स्नातक कोर्स किया है तथा उसके बाद सी.आई.सी.सी. में काम शुरू किया है। वह काफी सुन्दर है, परन्तु चेहरे पर कुछ मुंहासे हैं। बातों-बातों में मैंने उसे अपनी श्रीमती जी का फोटो दिखाया, तो वह खुश हो गयी। मैंने पूछा- यह कैसी है, तो वह उछलते हुए बोली- ‘वैरी… ब्यूटीफुल…।’ मैंने उसे धन्यवाद दिया। हमने सन्तरे का रस पीते हुए साथ-साथ फोटो खिंचवाया, जिसे देखकर श्रीमती जी बहुत चिढ़ेंगी। देखा जायेगा।

पार्टी में मेरे खाने के लिए कुछ नहीं था। मैंने सलाद खाना चाहा तो देखा कि उसमें एक नयी चीज पतले-पतले कतरे जैसी पड़ी है। मैंने पूछा यह क्या है, तो पता चला कि वह मछली है। उसे फेंक कर मैं भागा और कुछ फल खाकर काम चलाया।

पार्टी के बाद सबसे बार-बार हाथ मिलाकर हमने विदा ली। श्री हिरानो ने बड़े प्यार से हाथ मिलाकर हमें विदाई दी। वे पूरे चार दिन तक हर जगह हमारे साथ रहे थे और हमें टिकट ही नहीं नक्शे वगैरह भी लाकर दिये थे। हमारे खाने-पीने का प्रबन्ध किया था। हमारे एक साथी की टट्टी में खून आने लगा, तो वे न जाने कहाँ से उसके लिए दवा लेकर ही लौटे, उस समय जब पार्टी लगभग खत्म होने वाली थी। तब तक उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। उन्हें मन ही मन अनेक बार प्रणाम करके मैं अपने होटल तक आया और आकर सो गया।

श्री हिरानो जाते-जाते हमें आने-जाने तथा एअर पोर्ट टैक्स तक के पैसे दे गये थे। श्री हिरानो ने मुझे बताया था कि वे 20 महीने भारत में रह चुके हैं। मैंने उन्हें पुनः भारत आने का निमन्त्रण दिया, जो उन्होंने हँस कर स्वीकार कर लिया।

(जारी…)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

4 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 39)

  • विजयभाई , हमारी भी जापान यात्रा आप ने करवा दी . बहुत अच्छा लगा और एक बात मेरे ज़हन में आती है कि किया कोई हीअरिंग एड आप को मुआफिक नहीं बैठती ? अगर कुछ ऐसा हो तो आप के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है , आज कल तो हीअरिंग एड इतनी मैह्न्घी भी नहीं है .

    • विजय कुमार सिंघल

      भाई साहब, मेरे कान इतने ज्यादा ख़राब हैं कि कोई हियरिंग ऐड काम नहीं करता. मेरे पास एक बहुत अच्छा हियरिंग ऐड है और एक दो साल लगाया भी था. पर कोई लाभ नहीं हुआ. फिर लगाना बंद कर दिया.
      आस्ट्रेलिया से आये डाक्टरों ने एक आपरेशन के लिए कहा था जिसमें कान के भीतर मशीन फिट की जाती है, पर उसमें बहुत खतरा भी है और कोई गारंटी भी नहीं थी. इसलिए मैंने मना कर दिया. वैसे भी अब जिंदगी ऐसे ही अच्छी चल रही है. मुझे कोई शिकायत नहीं है. परम पिता ने मुझे इतना दिया है इतना दिया है कि उसे रोज बार बार धन्यवाद देता हूँ.
      आपको बहुत बहुत धन्यवाद.

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपके साथ जापान यात्रा करके काफी आनंद आया। इससे जापान की भौतिक उपलब्धियों को जानने का अवसर मिला। आज तो जापान काफी आगे पहुँच गया होगा। मुझे लगता है कि भौतिक प्रगति करने के लिए आध्यात्मिक मूल्यों की काफी हद तक क़ुरबानी देनी पड़ती है। काश कि दुनिया में कोई ऐसा देश होता जहाँ भौतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का संतुलन देखने को मिलता। शायद यह स्थिति कई युगों के बाद आएगी। आज की रोचक एवं ज्ञानवर्धक क़िस्त के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      हार्दिक आभार, मान्यवर !

Comments are closed.