मुक्तक/दोहा

मुक्तक माणिक

प्रेम की अविरल बहेगी धार जब ;

खिलखिलायेगा सकल संसार जब ।

तब किसी मन में ना होगी कामना ;

सत्य से हो जाओगे दो चार जब ।

 

रास्ते हो जाय सब दुश्वार जब ;

पाओं चलने से करें इंकार जब ।

हैं सहारा एक बस परमात्मा ;

बेसहारा छोड़ दे संसार जब ।

 

दिल सुलगता रहा धुप में शाम तक ;

चाँदनी रातभर मुस्कराती रही ।

नींद रूठी रही ख़्वाब आये नही ;

आपकी याद रह – रहकर आती रही ।

 

उम्र बीत गई जी हजुरी में ;

हर बात गई अधूरी में

‘चंद्रेश’ इक पल भी सुकुन ना मिला ;

माँ खो गई सुई धागे की धुरी में ।

 

गर्दिशें , मुफलिसी तू जानता नही ;

इंसान को इंसान तू समझता नही ।

कुछ ख़ास ही होगी मजबूरिया तेरी ;

वरना खुदा को तू मानता नही ।

 

— चन्द्रकान्ता सिवाल ‘चंद्रेश’

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित