कविता

अठन्नी

चलो आज फिर से निकलें
बचपन की गलियों में
हाथ में ले अठन्नी खुशियों की,

जिसमे मिलते थे
दस टॉफी संतरे वाली,
चुस्की मलाई वाली
कुल्फी बड़ी वाली,
राम लड्डू खस्ता वाले
बूढी के बाल गुलाबी से,
कैंडी झंडे वाली
पेंसिल रबर फूलों वाली,
अम्बरक खट्टे वाले
छल्ली उबली वाली,
इमली लाल वाली
जिसे खाके दुनिया को जीभ दिखाते थे,

तब अठन्नी में भी अमीर थे
अब पैसे बैंक में बहुत है
पर दिल से गरीब हो गए,
प्लास्टिक के कार्ड में सिमट गयी दुनिया
रिश्ते और दोस्त बहुत दूर हो गए,

दुनिया अठन्नी वाली सुन्दर थी
कोई चिंन्ता नहीं थी,
मस्ती खूब छनती थी
दोस्तों के ठहाके थे,
शाम तक खेलते थे
छत पर जा सो जाते थे,

चलो निकल चलें फिर
मस्ती की दुनिया में
हाथ में ले अठन्नी खुशियों की।

_____ प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

9 thoughts on “अठन्नी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हम ने तो सारा बचपन ही इन पैसों में गुज़ारा . १९५८ ५९ में नए पैसे आ गए फिर शाएद दो साल बाद किलो ग्राम आ गए और कुछ और बदला तो परदेसी हो गए.

    • प्रीति दक्ष

      shukriya gurmel singh ji.. 🙂

  • महातम मिश्र

    बहुत बढियां रचना महोदया प्रीती दक्ष जी, बचपन की दुकान याद आ गयी और खाली जेब में अठन्नी चवन्नी का वजन इतना अमीर लगा कि आज कागज़ का पुलिंदा और पासबुक में लिखी कई अंकों की रकम आज सुख शकुन से कोसों दूर दिख रही है ……..आभार……

    • प्रीति दक्ष

      shukriya mahatam mishra ji.. wakai jo jaddodahad maa se athanni ke liye karni padti thi aur phir agar kismat se ek rupya mil jata tha toh sham shaheliyon ke saath party hoti thi..

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. बचपन में हमने भी अठन्नी खूब चलायी है.

    • प्रीति दक्ष

      🙂 vijay ji .. dhanywaad..

  • Man Mohan Kumar Arya

    सुन्दर प्रशंसनीय कविता। अपने बचपन की याद दिलाकर तब अठन्नी से जो आनंद लूटते थे उन स्मृतियों को आँखों के सामने उपस्थित कर दिया। हार्दिक धन्यवाद।

    • प्रीति दक्ष

      shukriya man mohan ji .. bade maze kiye hain bachpan me athanni me ..

      • Man Mohan Kumar Arya

        Hardic Dhanyawad Bahin ji.

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