गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

चंद्रमा की छवि मनोहर मधुर रस टपका गई ।
चाँदनी की धवल चादर प्रेम से सहला गई ।

चन्द्र किरणों ने अनोखा सेतु जब निर्मित किया।
नृत्य करती अप्सरायें भी धरा पर आगईं ।

प्रकृति ने सुर ताल छेड़े नाद स्वर झंकृत हुआ ।
जलधि की लहरें मचल कर व्योम से टकरा गई ।

प्रेम वश नक्षत्र सारे मुदित हो हँसने लगे ।
नवल कोमल रश्मियाँ भी अवनि को नहला गई ।

देख अद्भुत द्रश्य नभ का चकित सारा जग हुआ ।
चन्द्र की ये छवि मनोहर अमिय रस बरसा गईं ।

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

One thought on “गीतिका

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर गीतिका !

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