क्षणिका

यह पल ही है अपना

आशा ही जीवन है,
आशा ही ज़िंदगी है,
आशा ही विश्वास है,
आशा ही बंदगी है.

आशा के बल पर हम जीते हैं,
आशा के बिना जीना भी क्या जीना,
टूट गई है जिनकी आशा,
ज़हर पड़ता है उनको पीना.

भविष्य की योजना ऐसे बनाओ,
जैसे सौ साल हो जीना,
काम करो तो ऐसे करो,
जैसे अभी ही हो मरना.

अभी ही कर लो जो करना है,
बाद का इंतज़ार क्यों करना?
अगला पल किसने देखा है,
यह पल ही है अपना.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

6 thoughts on “यह पल ही है अपना

  • लीला तिवानी

    प्रिय विजय भाई जी, शानदार प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार कविता !

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल ठीक कहा है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अभी ही कर लो जो करना है,

    बाद का इंतज़ार क्यों करना?

    अगला पल किसने देखा है,

    यह पल ही है अपना. बिलकुल सही ,एक मिनट का भी भरोसा नहीं लेकिन सौ वर्ष जीने की तमन्ना है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी नीतू जी, शुक्रिया.

  • नीतू सिंह

    अच्छी कविता है

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