हास्य व्यंग्य

गोवध निषेध का निदान

गोवध समस्या को लेकर बहुत वाद-विवाद हो चुका है और होता रहेगा। कारण स्पष्ट है। जहाँ समाज का एक धड़ा यह मान कर चलता है कि गोमांस उसके जन्नत के टिकट की एक अहम ज़रूरियात है और जन्नत नहीं तो कुछ भी नहीं, वहीं दूसरा धड़ा यह मानता है कि क्योंकि उसके तमाम देवी-देवता गाय की सवारी करते हैं और गोवध होने से वे सब सड़क पर आजाएंगे। समस्या विकट है और निदान कठिन।

मेरा एक सीधा सादा सुझाव अगर किसी कानून को गढ़ने वाले की समझ में आ जाय तो दोनों ही धड़ों का स्वर्ग का रास्ता आसान हो जाएगा। और वो है नीलगाय के वध को हरी झंडी देना। किसी भी पौराणिक व्यवस्था से यह नहीं सिद्ध होता है कि इस ‘गाय’ में भी देवताओं का वास है ।अतः यह गोवध के दायरे में नहीं आती। वैसे भी नीलगाय हिरण की प्रजाति है। उधर, इसके नाम में क्यों की ‘गाय’ लगा हुआ है अतः जन्नत के दरबानों को गच्चा दिया जा सकता है। इस तरह ‘गोकशी’ भी हो जाएगी और गाय पर सवार देवी-देवता पैदल चलने पर मजबूर भी नहीं होंगे।

इस व्यवस्था से सबसे बड़ा फ़ायदा किसान को होगा जो बेचारा एक तरफ तो क़र्ज़ और मौसम से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ इन्ही जानवरों के उत्पात से। खुदकुशी न करे तो क्या करे। सरकार को चाहिये कि नीलगाय, सुअर आदि से जहाँ जहाँ भी किसान परेशान हैं वहाँ इन जानवरों को मारनेे,पकड़ने की खुली इजाज़त दे देनी चाहिये। किसानों को तो राहत मिलेगी ही,उनके अलावा मासाहारियों को भी अपने आहार में विविधता मिल जाएगी और दाल न खा पाने का मलाल भी घटेगा। सर्व माननीय जावड़ेकर जी इसके हिमायती भी हैं, यह अलग बात है कि सुश्री मेनका गाँधी को इस निर्णय से बहुत कष्ट पहुँचेगा। वे अपनी जेठानी से कहकर अपनी व्यवस्था इटली में करा सकती हैं, क्योंकि एक व्यक्ति के लिये हजारों का कल्याण नहीं नकारा जा सकता।

अगर  पाठकों को यह व्यवस्था सही लगती है तो उनसे करबद्ध प्रार्थना है कि वे इसका इतना प्रसार करें कि इसकी गूँज संसद में सुनाई दे। विजय माल्या और ललित मोदी सरीखे, जो पलायन वाद में विश्वास रखते हैं, वापस आ सकते हैं जब उन्हे यह पता चलेगा कि माँसाहारियों के अच्छे दिन आ गए हैं और मुर्गी-बकरा के उबाऊ लज़्ज़त के अलावा भी ज़ायके उपलब्ध होने लगे हैं।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “गोवध निषेध का निदान

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा हा ,सुझाव बहुत पसंद आया ,सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे .

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