विज्ञान

भारत के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की उत्कृष्ट सफलता पर बधाई

ओ३म्

कल भारत ने अन्तरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की जिससे भारत विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में सफल व उन्नत देशों में न केवल सम्मिलित हो गया अपितु इसका स्थान अत्यन्त गौरवपूर्ण बना है। इस सफलता का श्रेय हमारे वैज्ञानिकों व उनकी परस्पर सहयोग की उच्च व उदात्त भावनाओं को ही है। हमारे यह वैज्ञानिक अज्ञान, पाखण्ड, अन्धविश्वासों व रूढ़िवादी परम्पराओं से दूर रहकर पूरी संजीदगी व संकल्प शक्ति से प्रकृति के रहस्यों को जानने व उन्हें जानकर उसका उपयोग अपने विज्ञान संबंधी कार्यों में करते हैं। इससे देश व विश्व के सभी मत-पन्थों को भी शिक्षा लेकर अपनी अपनी अविद्या, अज्ञानपूर्ण मान्यताओं व सिद्धान्तों को भी ज्ञान व विज्ञान के अनुरुप बनाने का प्रयास करना चाहिये। संसार में सुख उसी दिन हो सकता है जिस दिन मनुष्य अज्ञान व अविद्या से दूर होकर पूर्णतः सत्य को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिष्ठित करेगा। अभी समाज, देश एवं विश्व इस दिशा में बहुत पीछे है। महर्षि दयानन्द ने वेद प्रचार करके और सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थ लिख कर समाज और देश से असत्य के निवारण और सत्य के ग्रहण व धारण के कार्य का श्रीगणेश ही किया था। हमारे देश व विश्व के मत-पन्थों ने इसे अपने अपने हितों के विरुद्ध जानकर स्वीकार नहीं किया परन्तु सुधी ज्ञानी व वैज्ञानिकों ने इसका भरपूर प्रयोग करते हुए उसे नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया है जिससे विश्व के सभी लोगों जिसमें अन्धविश्वासों, पाखण्डों व रूढ़िवाद को मानने वाले मत-पन्थ के अनुयायी भी बढ़ी संख्या में हैं, लाभान्वित हुए हैं।

कल 22 जून, 2016 को भारत के श्रीहरिकोटा में प्रातः 9:26 बजे घटी उपग्रह प्रक्षेपण की इस सफल ऐतिहासिक घटना में भारत ने 26 मिनट के मिशन में एक साथ 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जिसमें 3 उपग्रह भारत के तथा शेष अन्य देशों के थे। प्रसन्नता की बात यह है कि इस उपग्रह प्रक्षेपण कार्य में अमेरिका जैसे उन्नत देश के भी 13 उपग्रह अन्तरिक्ष में अपनी अपनी कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिये गये। अमेरिका के अतिरिक्त कनाडा के 2, जर्मनी का 1 और इंडोनेशिया का भी 1 उपग्रह भी इस उपलब्धि में सम्मिलित है। एक ओर हमारे राजनीतिक दल वोट बैंक की स्वार्थपूर्ण राजनीति में मस्त रहते हैं वहीं दूसरी ओर देश के सच्चे हितैषी हमारे वैज्ञानिक देश को सम्मान दिलाने और देशवासियों को अच्छे दिन प्राप्त कराने के लिए अहर्निश लगे रहते हैं और एक के बाद एक सफलतायें प्राप्त करते आ रहे हैं। हम सच्चे व अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान सभी वैज्ञानिकों को श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और उनके लिए अपनी हार्दिक शुभकामनायें देते हैं। हम ईश्वर से भी प्रार्थना करते हैं कि वह देश के सभी लोगों को मत-पन्थ-सम्प्रदाय व दलगत राजनीत से ऊपर उठकर देश की उन्नति में कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करने की सद्बुद्धि प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। सत्य को ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहने और अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करने से ही देश अन्धविश्वासों से शून्य एक मत व एक विचार का बन सकता है। यही महर्षि दयानन्द का स्वप्न था। इसके लिए अभी बहुत लम्बी यात्रा की जानी शेष है। विज्ञान के क्षेत्र में यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि महर्षि दयानन्द के एक शिष्य ‘शिवकर बापू जी तलपदे (1864-1916) ने सन् 1895 में विश्व में सर्वप्रथम मानव रहित विमान बनाकर कर मुम्बई के चैपाटी क्षेत्र में अनेक प्रमुख हस्तियों की उपस्थ्तिि में उसका सफलत प्रशिक्षण किया था।

मनमोहन कुमार आर्य

4 thoughts on “भारत के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की उत्कृष्ट सफलता पर बधाई

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, भारत के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की उत्कृष्ट सफलता पर हम सब भारतीयों के लिए अत्यंत गौरव का विषय है. अति सुंदर व सटीक आलेख के लिए आभार.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। आज के हमारे सफल वैज्ञानिक कुछ कुछ प्राचीन ऋषियों के समान है जो संसार से मन को हटा कर अपनी खोज के विषय में लगा कर उससे एकाकार हो जाते हैं तभी यह सफलता मिलती है। ऐसे वैज्ञानिकों को बार बार नमन है। इससे हमारे देश के मत, पंथ व सम्प्रदायों के लोगो को सबक लेना चाहिए। वह करते कुछ नहीं परन्तु अपने आप को ईश्वर से भी कहीं अधिक बड़ा समझते हैं। देश की दुर्दशा के लिए यही लोग उत्तरदाई हैं। सादर।

  • मनमोहन भाई , आज तक हमारे ज्योतिषी इन ग्रहों से हमें डराते ही रहे हैं और अभी तक भोले भाले लोगों को डरा रहे हैं . हमारी माएं बचपन में हमें चाँद मामा के गीतों की लोरीआं देती आई है और आज सब जानते हैं किः चाद भी एक धरती ही है . हमारे कथावाचक बचपन में हमें बताया करते थे किः हनुमान जी जब छोटे थे तो उन्होने सूर्य को मुंह में डाल लिया था, कितना अंधविश्वास था यह !

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। फलित ज्योतिष मिथ्या है ऐसा ऋषि दयानन्द जी ने लिखा है। यही बात आप ने कही है तो इससे प्रसन्नता हो रही है। मेरे परिवार के लोग भी ज्योतिषों की बातो को मानते थे परन्तु मैंने पुस्तकें पढ़ने के बात इनका त्याग कर दिया था। मुझे तो ऐसी बाते देख व सुनकर गुस्सा आता है। मुझे लगता है कि चन्द्रमा को मामा कहने के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि पृथ्वी को हैं मा कहते हैं और यह अन्न फल वा आश्रय देने से माता ही है। पृथ्वी का और चन्द्रमा का भाई बहिन का रिश्ता कल्पित किया गया है। अतः चन्द्रमा हमारा मामा होता है। यदि चन्द्रमा न होता तो हमे रात्रि में न तो प्रकाश मिलता और न ही फल व औसधियों में रस आता। अतः चन्द्रमा का हमसे और सभी प्राणियों के जीवन से गहरा सम्बन्ध है और किसी समय किसी ने चन्द्रमा को मामा कह कर सम्मान दिया लगता है। इसको इसी भावना से लेना चाहिए। आपकी बात बिल्कुल सही है की चन्द्रमा भी पृथ्वी की तरह से धरती है। हनुमान जी वाली बड़ी गप है और चांद के टुकड़े करने वाली बात इससे छोटी गप है। छोटी गप का खंडन बड़ी गप से होता है अतः यह कल्पना की गई है। ऐसा ही स्वामी शंकराचार्य जी ने भगवान बुद्ध जी के मत का खंडन करने के लिए उससे बड़ा झूठ या गप्प बोली थी। हनुमान जी का सूर्य को मुंह में रखने का तो प्रश्न ही नहीं होता। हनुमान जी 6 से 7 फूट के रहे होने और सूर्य उनसे करोड़ो गुना बड़ा तो था ही अपितु आग का गोला भी है। मुंह में रखने की बात तो दूर वह तो उसके पास भी नहीं जा सकते थे। इस बात को गप ही मानना चाहिए। बहुत अच्छी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comments are closed.