कविता

नसीब का खेल

नसीब का खेल भी
बड़ा ही अजीब है ।
कोई खुशनसीब है
कोई बदनसीब है ।
नियति का खेल
बड़ा ही निराला है ।
कोई बेहद अमीर है
कोई बेहद गरीब है ।
सुस्वादिष्ट पकवान 
मिलने पर भी
कोई नखरे दिखाता है ।
कोई सूखी रोटी
खाने को ललचाता है ।
किसी की जोली 
खुशियों से भरी है ।
किसी की जोली
वर्षों से फटी है ।
किसी के अहम के मारे
जमीं पर पैर नहीं पड़ते ।
और कोई नंगे पैर
गली-गली फिरते ।
अच्छे खासे वस्त्रों से 
किसी का जी भर जाता है,
कोई फटे वस्त्र भी
वर्षों तक चलाता है ।
विधाता ने भी कैसी
अजीब नियति रची?
संतुष्ट ये भी नहीं
संतुष्ट वो भी नहीं ।

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com