सामाजिक

प्रत्येक दिन दौड़-भाग के लिए नहीं है !

शायद किसी बाइक के विज्ञापन पोस्टर पर लिखा था- every day is a Race Day’. एक बाइक कंपनी के लिए भले ही ये पंक्तियां बाइक की खूबियों को दिखाने वाली हों पर अगर आज की ज़िंदगी के संदर्भ में इस पर विचार किया जाये तो लगता है कि जैसे ये आज के इंसानी जीवन को विश्लेषित करना चाह रही हों। हम हर पल रेस ही तो लगाते हैं, कभी अपनी इच्छाओं से,कभी अपनी महत्वाकांक्षाओं से तो कभी आस-पास के लोगों से।हर नया दिन हमारे मन में यही विचार लेकर आता है कि आज हम अपनी अमुक इच्छा पूरी करेंगे। पर जैसे ही हम अपनी एक इच्छा पूरी करते हैं कि दूसरी इच्छा उत्पन्न होकर हमें अपने पीछे भगाने लगती है। और हम इस रेस में इस कदर शामिल हो जाते हैं कि रास्ते में आने वाले खूबसूरत नजारों की तरफ नज़र तक नहीं उठा पाते।
ऐसी ही एक कहानी सुनाना चाहती हूँ ,एक लड़का था वो बहुत अमीर बनना चाहता था।उसने पहले छोटा व्यवसाय शुरू किया, उसकी मेहनत और लगन से उसका व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ने लगा। उसकी शादी हुई,बच्चे हुए लेकिन उसका पूरा ध्यान उसके व्यवसाय पर ही रहता। वो न तो कभी अपनी पत्नी और न ही बच्चों को समय देता। अगर कभी कोई उससे इस बारे में कहता भी तो उसका जवाब होता कि परिवार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उसके सदस्यों की जरूरतें पूरी करना है, और जरूरतें केवल पैसे से ही पूरी होती हैं। वो कहता, ” मैं जितना ज्यादा पैसा कमाऊंगा उतना ही अच्छे से परिवार का ध्यान रख पाउँगा”। उसकी पत्नी बहुत अकेली पड़ गए, बच्चे भी धीरे-धीरे बड़े हो गए थे और अपनी दुनिया में रमने लगे थे। चूँकि बच्चों को पिता से कभी भावनात्मक लगाव नहीं मिला था इसलिये वो अपने सुख दुःख तक ही सीमित थे। पत्नी को अचानक कैंसर हो गया, उसने बहुत पैसा खर्च किया इलाज में पर कभी भी पत्नी के पास बैठ उसे दिलासा नहीं दिया क्योंकि वह ऐसा करना जरुरी नहीं समझता था। तभी उसकी पत्नी चल बसी, अब वह भी बूढ़ा हो रहा था। शारीरिक और मानसिक शक्ति के क्षीण होने के साथ ही वह बिस्तर से लग गया। उसका व्यवसाय अब उसके बेटों ने संभाल लिया था। बीमारी और अकेलेपन में उसे अब भावनात्मक संबल की जरूरत महसूस होने लगी थी। एक दिन उसने अपने बेटों से कहा कि कभी-कभी दो पल मेरे पास बैठ जाया करो तो उन्होंने जो जवाब दिया कि उससे उस आदमी को अपने जीवन भर की भूल का आभास हो गया। उन्होंने कहा कि,”आपको जिन्दा रहने के लिए क्या चाहिए?अच्छा खाना और अच्छी दवाइयाँ, हमें नहीं लगता कि इसमें कोई कमी है। यही तो आपने हमें बचपन से सिखाया है कि सबसे जरूरी है चलते रहना, अगर रुके तो पीछे रह जायेंगे।”
यह सुनकर उसे पता चला कि उसने अपनी ज़िंदगी के कितने अनमोल पलों को अपनी महत्वकांक्षा के बोझ तले कुचल दिया। इसलिए दोस्तों, एक बाइक या कार के लिए हर दिन रेस डे हो सकता है पर हम इंसानों के लिए नहीं। ये खूबसूरत दुनिया हम अपनी सुन्दर इंसानी आँखों से शायद एक बार ही देख पाते हैं……..

लवी मिश्रा

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश