गीत/नवगीत

गीत

(रानी पद्मावत के गौरवशाली इतिहास को दूषित करने की फ़िल्मी साजिश पर संजय लीला भंसाली को राजपूत करनी समाज द्वारा सबक सिखाने का समर्थन करती कविता)

कब तक बॉलीवुड के आका, डाका डालेंगे अस्मत पर
कब तक घायल संस्कृति होगी, कब तक रोयेगी किस्मत पर

कब तलक सनातन पीढ़ी का परिहास बनाया जाएगा
कब तक हिंदू की छाती पर, दुष्चक्र चलाया जाएगा

अब नहीं, नहीं जी, और नहीं, यह साजिश पलने देना है
जो बलिदानों को गाली दे, वो फिल्म न बनने देना है

संजय तुमने शायद अफीम पीली झूठे इतिहासों की
अभिव्यक्ति तुम्हारी है गुलाम शायद वहशी अहसासों की

रानी पद्मावत नाम नही, भारत की शौर्य कहानी है
रानी पद्मावत रजपूती गाथा की अमर निशानी है

रानी पद्मावत नाम नही, चित्तौड़ किले की काया है
वो मर्यादा का दीपक थी, वो परम्परा की छाया है

खल कामी खिलजी का चरित्र तुमको रूमानी लगता है
वो क्रूर दरिंदा भी तुमको अब प्रेम निशानी लगता है

जो खिलजी रानी रूप देख हमला करने को आया था
रानी का रोम तलक भी जिसने कभी नही छू पाया था

जिस खिलजी के प्रतिउत्तर में, रजपूत वीर कुर्बान हुए
आंगन की तूलसी बची रहे, इस चाहत में बलिदान हुए

खिलजी के गंदे हाथ छुएं, उससे पहले प्रतिकार किया
रानी अभिमानी ने आखिर जल कर मरना स्वीकार किया

रे मूरख संजय देख ज़रा, जो अग्नि चिता पर लेटी थी
वो सुल्तानों की लूट नहीं, सच्चे हिन्दू की बेटी थी

वो रानी पावनता प्रतीक, वो स्वाभिमानी की मानी थी
वो रानी रजपूताने की, वो रानी हिंदुस्तानी थी

उस रानी की गाथा, बाज़ारी राहों में दिखलाओगे?
तुम रानी के तन को खिलजी की बाँहों में दिखलाओगे?

हो फ़िल्मकार तो फिल्म बनाओ, बुरके के हालातों पर
10 बच्चे पैदा करने पर, इस्लामी तीन तलाकों पर

अभिव्यक्ति-दुहाई देते हो, पर अक्सर ही बेहोश रहे
तुम इस्लामी आतंकों पर बहरे होकर खामोश रहे

रानी पद्मावत के बेटों के थप्पड़ जब दो पड़ते हैं
तुमको हिन्दू के बेटों में आतंकी दिखने लगते हैं?

तुम सम्मुख धर्म सनातन के, कीचड बरसाते जाओगे
भारत की बहन बेटियों को नीलाम कराते जाओगे

ना रानी का जौहर देखा, ना बलिदानी अरमान दिखा?
रानी का जिस्म तुम्हे केवल अय्याशी का सामान दिखा?

बॉलीवुड के भांडों सुन लो, दुःस्वप्न नही पलने देंगे
चलचित्र बनाओ खूब मगर, छलचित्र नही चलने देंगे

ये कवि गौरव चौहान कहे, फिल्मों का भूत उतारेंगे
अब बात बहन बेटी की है, अंदर तक घुसकर मारेंगे

— कवि गौरव चौहान