ग़ज़ल : म़जा आता है
जब कोई मुझको बनाता है म़जा आता है
बात अपनी वो छुपाता है म़ज़ा आता है
हमने विश्वास किया शोख़ पे खुद से ज्यादा
अपनी चतुराई दिखाता है म़ज़ा आता है
चेहरा मासूम ना करता है हक़ीकत उसकी
जब भी वो ऩाज उठाता है म़ज़ा आता है
सहज भोलापन गहनें सदा रहे अपने,
चमक उनकी जो चुराता है म़ज़ा आता है
बाल खोपड़ी के जो सफेद हो गये सारे,
काले जब कोई बनाता है म़ज़ा आता है
पैसा भगवान नहीं व्यग्र मगर कम भी नहीं,
जाल अपना वो बिछाता है म़ज़ा आता है