बाल कविता

दादी की ढोलक

यह ढोलक है दादी की।

दादी की परदादी की।

दोनों इसे बजाती थीं।

मिलकर गाने गाती थीं।

हम भी इसे बजाते हैं।

गाते हैं मस्ताते हैं।

दादी को परदादी को,

झुककर शीश नवाते हैं।

*प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव वरिष्ठ साहित्यकार् 12 शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र 480001