लघुकथा

लघुकथा : कब तक

वर्माजी की बहु फिर से उम्मीद से थी ,पहले एक लड़की थी सो इस बार सब उम्मीद लगाये थे की जरूर लड़का ही होगा | मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था | नर्स ने जब आकर बताया की बधाई हो लड़की हुई है तो ओरतो ने ऐसे घूर कर देखा मानो खा ही जाएँगी किसी ने माथा पर हाथ मारा और बोली लो फिर ठीकरा फुट गया ,|
काकी मामी बहु के सामने ही बोलने लगी ,पूनम जो अभी प्रसव पीड़ा से थकी पपड़ाए होठो जीभ फ़िर रही थी ये सब सुन कर और डर गई ,तब मिसिज वर्मा को बहु का चेहरा देख ठंडी साँस लेती बोली कोई बात नही इस बार नही तो अगली बार सही ,सुन कर पूनम सोचने लगी एक बार और ,इस महगाई के ज़माने में दो बेटियो के भविष्य का सवाल मुह बाये खड़ा था और ये लोग तीसरी बार और की उम्मीद लगाये बैठे है ,यदि तीसरी बार भी लड़की हुई तो क्या चौथी बार आखिर कब तक और कितनी बार ये सिलसिला चलेगा |
पूनम गंभीर हो गई ,उसने मन ही मन कुछ निर्णय किया और पति सुरेश से अकेले मै मिलने का इंतजार करने लगी |

गीता पुरोहित, जयपुर राजस्थान

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,

One thought on “लघुकथा : कब तक

  • राजकुमार कांदु

    बहुत सुंदर लघुकथा आदरणीया ! पूनम ने अपने पति से मिलने का फैसला सही लिया था । बस ! दो ही अच्छे !

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