गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

आप के पास है आप की साखियाँ

मत समझना इन्हें आप की दासियाँ

गैर होना इन्हें खूब आता सनम

माप लीजे हुई आप की वादियाँ॥

कुछ बुँदें पिघलती हैं बरफ की जमी

पर दगा दे गई आप की खामियाँ॥

दो कदम तुम बढ़ो दो कदम मैं बढूँ

इस कदम पर झुलाओ न तुम चाभियाँ॥

मान लो मेरे मन को न बहमी बुझो

देख लो उड़ गई आप की झाकियाँ॥

चाह से आह निकले सुनो तो कभी

पास आती नहीं आप की दरमियाँ॥

दूर “गौतम” खड़ा सोचता की कभी

ऋतु बदली नहीं आप की साथियाँ

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ