“मैंने सब-कुछ हार दिया है”
छला प्यार में जिसने मुझको,
मैंने उससे प्यार किया है।
जीवन के इस दाँव-पेंच में,
मैंने सब-कुछ हार दिया है।।
जब राहों पर कदम बढ़ाया,
काँटों ने उलझाया मुझको।
जब गुलशन के पास गया तो,
फूलों ने ठुकराया मुझको।
जिसको दिल की दौलत सौंपी,
उसने ही प्रतिकार लिया है।
जीवन के इस दाँव-पेंच में,
मैंने सब-कुछ हार दिया है।।
झंझावातों-तूफानों ने,
जब-जब नौका को भटकाया।
तब-तब बहुत सावधानी से,
खुद मैंने पतवार चलाया।
तट पर आकर डूबी नौका,
सागर गहरा पार किया है।
जीवन के इस दाँव-पेंच में,
मैंने सब-कुछ हार दिया है।।
बनकर कृष्ण-कन्हैया कब से,
खोज रहा था मैं राधा को।
अपनी पगडण्डी की कब से,
हटा रहा था मैं बाधा को।
ठगा मोहनी मुस्कानों ने,
मैंने जब मनुहार किया है।
जीवन के इस दाँव-पेंच में,
मैंने सब-कुछ हार दिया है।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)