कविता

तू भी बेवफ़ा निकला

बड़ी हसरत से आए थे, मिलने को ऐ दोस्त,
सारी दुनिया की तरह, तू भी बेवफ़ा निकला.

अब तक तो न कहीं भी, वफा का सिला मिला,
तुझसे भी ऐ दोस्त, गिला-ही-गिला मिला.

रहती यहां सदा को, कोई भी शै नहीं,
तूने समय से पहले, है अलविदा कहा.

किसी और से तो न थी, वफ़ा की हमें उम्मीद,
तूने मगर ऐ दोस्त, ज़फ़ा का सिला दिया.

न करता तू मेरी दुनिया को, आबाद ऐ दोस्त,
वाजिब न था यूं मुझको, बरबाद किया है.

आसां बहुत है सहना, गर्दिश-ए-जहां भी,
तूने मगर ये कैसा, ज़ुल्म-ओ-आज़ार किया है.

एक बार तो आ जाते, नाम को ही सही,
इक बार तो हम कह पाते, तूने करम किया है.

तेरी चमक से ही कभी, सितारों की चमक थी,
मुझ पर ही नहीं तूने, सितारों पर भी सितम किया है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “तू भी बेवफ़ा निकला

  • लीला तिवानी

    बेवफ़ा से वफ़ा की उम्मीद क्या करिए!
    ख़फ़ा होने से भी क्या हासिल होगा नज़ारा करते चलिए.

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