कविता

बचपन की यादें

बचपन की यादें कितनी अच्छी होती हैं
आज उन यादों को ताजा करना अच्छा लगता है
कहा खो गया वो बचपन वो हसीन दिन
जब न होती थी कोई फ़िक्र
खेल में जिंदगी के दिन बीतते थे
न पढ़ने की फ़िक्र न कुछ करने की फ़िक्र
पापा की डाट खाना माँ का लाड
सब बहुत याद आता है
अब सब कुछ कहीं खो गया है
न वो बचपन रहा और न वो लाड़ रहा
वो स्कूल जाना और माँ के हाथ का पराठा खाना
सब कुछ याद आता है
बड़ों की बातें सुनना उनको हँसी में उड़ाना
फुर्सत में दादी से कहानी सुनना
सब बहुत याद आता है
अब न वो नानी दादी की कहानी रही
न वो माँ के हाथ का पराठा रहा
न वो लाड़ रहा
सब कुछ टीवी मोबाइल पर सिमटकर रह गया है
माँ के हाथ के खाने की जगह फ़ास्ट फ़ूड ने ले ली है
बचपन बहुत याद आता है
गरिमा
 पाण्डे

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384