सामाजिक

नारी का अस्तित्व एवं नारी मुक्ति 

कहते हैं कि आज नारी का अस्तित्व खतरे में हैं मग़र क्यों ? नारी के लिए आज कई सारे कानून हैं। समाज की ओर से नारी के लिए सभ्यता, संस्कृति और नीतिकता के नाम बेड़ियाँ तैयार की हुई हैं, एवं जिसकी रक्षा हेतु समाज और सरकार की ओर से काफी प्रयत्न किये जा रहे हैं। हम माने या न माने आज भी हमारे समाज में नारियों के पैरों में बेड़ियाँ जकड़ी हुई हैं। नारियां पुरुषों के अधीन हैं हमारे पुरुष प्रधान समाज में एक नारी शोषण ही होता है। अपने परिवार और समाज के खिलाफ जाकर कुछ करने के एक स्त्री सौ बार सोचती है।

हमारे समाज में आज बहुत ही कम नारियां हैं जो समाज में खुद को प्रतिस्थापित कर पाती हैं। नारी मुक्ति केवल एक नारा नहीं है आज इसे मायने सफल अभियान बनाने की जरूरी है। एक परिवार में जब एक बेटी का जन्म होता तो लोगों के चेहरे लटक जाते और बेटों के जन्म पर खुशियों की मिठाई बांटी जाती है। ये हमारे समाज का एक कटु सत्य है, लेकिन इसे ध्यान पूर्वक एकबार अगर हम सोचें तो हमारे समाज में अगर बेटियां न हो तो हमें अपने बेटों के लिए बहू कहाँ से मिलेगी। नारी हमारे समाज की एक एेसी कड़ी है जो मायके और ससुराल दोनों कुनबों एक साथ जोड़ती है। आज नारी प्रत्येक क्षेत्र में खुद को प्रतिस्थापित करने लिए लड़ रही है एवं खुद को स्वावलम्बी बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है।

आज हमारे देश में चारों ओर बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा गूंज रहा है। और ये हमारे देश एवं समाज के लिए बहुत ही उत्तम एवं उत्कृष्ट् विचार है। हमें अपनी बेटियों को पढ़ाने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सफल प्रयास करने होंगे। क्योँकि एक पढ़ी लिखी स्त्री न केवल अपने परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए हितकारी होती है। अर्थात घर में अगर एक स्त्री शिक्षित हो तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। और परिवारों के शिक्षित होने से हमारा समाज उन्नत होता है एवं समाज उन्नत होने से सारा राष्ट्र उन्नत होता है।

कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है ये बात हम सभी जानते हैं। बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ इस सुंदर सन्देश के पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण निहित है। स्त्री शिक्षा के साथ -साथ हमें समाज से स्त्री -पुरुष भेद -भाव को भी मिटाना होगा। शारीरिक दृष्टिकोण से स्त्रीयों को कई प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ता है। जब एक स्त्री के शरीर पर आक्रमण होता है तो उसका तन ही नहीं बल्कि मन भी आहत होता है। इसलिए हमें अपनी बेटिओं को शारीरिक सुरक्षा हेतू विशेष प्रशिक्षण देने चाहिए। ताकि वे अपनी आत्म रक्षा कर सकें। प्रभु श्री राम की पत्नी सीता माता इस संसार की एक सक्षम एवं दृढ़ संकल्प वाली स्त्री मानी जाती हैं परन्तु उन्हें भी अपनी असावधानी के कारण रावण रूपी दुराचारी का सामना करना पड़ा। इसलिए आज की स्त्रिओं को भी सावधानी पूर्वक समाज में स्वयं को प्रतिस्थापित रखना होगा।

हमारी बेटियां अनमोल हैं ये बात हमारे समाज को समझनी होगी। बेटियां ससुराल और मायका दोनों कुनबों को जोड़ती हैं। बेटी जियेगी तो ही हमें बहू मिलेगी और संसार में नवजीवन का संचार एवं नवनिर्माण होगा। इसलिए पढ़ेगी बेटिया तो ही आगे बढ़ेगी बिटिया। आज हम नारीयों को आगे बढ़ना होगा स्वयं को पुरुषों द्वारा बंधी जंजीरों से मुक्त करना होगा। कोई पुरुष कितना भी ताकतवर क्यों न हो एक स्त्री के समान कभी नहीं बन सकता। एक स्त्री में नवजीवन को जन्म देने विशेष क्षमता होती है पुरुष जो इस काम कभी नहीं कर सकता। आज की नारी को स्वयं को निर्भय बनाने की जरुरत है। सही मायने में नारी मुक्ति खुद पुरुषों की बनायीं गई रीती एवं से मुक्त करना है। आज नारी अपने मन के दर्पण से पुरुष का भय दूर करे वो पुरुष को मुक्त करें क्योंकि नारी तो मुक्त ही है। जीवन में खुलकर साँस लें और अपनी सफलता की उड़ान भरें।

विनीता चैल, बुंडू, रांची, झारखण्ड।

विनीता चैल

द्वारा - आशीष स्टोर चौक बाजार काली मंदिर बुंडू ,रांची ,झारखंड शिक्षा - इतिहास में स्नातक साहित्यिक उपलब्धि - विश्व हिंदी साहित्यकार सम्मान एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित |