गीत/नवगीत

गीत – अब मत बांटो रे

टुकड़ों-टुकड़ों में धरती को अब मत बांटो रे।
बांट लिया घर, खेत, बाग, मत अम्बर बांटो रे।।

गगन चूमते लम्बे तरु बादल पास बुलाते।
गरज-गरज खूब बरसते भू की प्यास बुझाते।
वृक्ष हमारे जीवन दाता, इन्हें न काटो रे।।

ऊंचे उठे पहाड़ देश का स्वाभिमान गाते।
जड़ी-बूटियां, फूल, फूल नग-तन महकाते।
संस्कृति के संवाहक, रक्षक, भूधर मत काटो रे।।

लोगों के मन परिवर्तित बदले हैं आचार सभी।
धन के परितः घूम रहें मानवीय व्यवहार सभी।
उगी विष-बेल हृदय में आज, उसको छांटो रे।।

निहित स्वार्थ की दीमक हर उर में आज पली है।
और अर्थ की चकाचैंध में फंसी सुमन-कली है।
समरसता ममता से मन की खांई पाटो रे।

— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com