कविता

अटल जी के प्रति – मेरी बात

(1)
नहीं रहे हैं श्री अटल, जो थे सच्चे लाल
पांच दशक करते रहे, सचमुच ” नील” कमाल
प्रतिभा अद्भुत ले बढ़े, वे मंज़िल की ओर
आगे बढ़ते ही गये, लिये लगन का ज़ोर
(2)
कविता है खामोश अब, कलप रहे हैं गीत
हमें छोड़कर के गया, सबके मन का मीत
अटलबिहारी जी गये, पर जीवित हर हाल
कालजयी व्यक्तित्व का, क्या कर लेगा काल !
(3)
जो खुद में भूगोल थे, थे पूरा इतिहास !
जो सागर से थे गहन, थे सबका विश्वास
नीति,धर्म पोषित हुये, उनसे पा आवेग
मर्यादा का जो सदा, बने रहे थे नेग !!
(4)
अटल सत्य यह दोस्तो, वे तो थे अवतार
गौरव के थे वे धनी, थे जीवन का सार
आज दिशाएं रो रहीं, रोता है आकाश
सूना यह घर हो गया, टूट गई है आस !!
               — डॉ. नीलम खरे

डॉ. नीलम खरे

डॉ.नीलम खरे आज़ाद वार्ड, मंडला (म.प्र) -481661