हास्य व्यंग्य

रूपए का गिरना

पेट्रोल पंप की ओर कार मोड़ते ही मुझे घिसई दिखाई पड़ गया। देखते ही मैंने उसे जोर से पुकारा, “का हो घिसई का हालचाल बा?” हालचाल पूँछने से खुश हुआ घिसई मेरे पास आकर बोला, “सब गुरू का आशीर्वाद हौवे..” वैसे मैं कोई गुरूवाई नहीं करता और न ही इसे कोई “गुरु-मंन्त्र” दिया है लेकिन इसका “गुरू” वाला संबोधन मुझे खुशी दे जाता है। खैर, उसके मेरे पास आने से गांजे की गंध मेरे नथुनों में पहुँच गयी..मैं समझ गया कि इसने अवश्य गाँजा चढ़ा रखा है..असल में क्या है कि गाँजे का नशा उसे सारी समस्याओं से मुक्त कर देता है, सूदखोरों से लिया कर्ज हो या फिर रूपये का चढ़ना उतरना, यह सब वह भूल जाता है..! मैं ठहरा थोड़ा बुद्धिजीवी टाइप का और ऊपर से उसका “गुरू” का संबोधन सोने पर सुहागा, तो मैं उस मूढ़मति को रूपये के गिरने की बात से जागरूक करने की तरकीब सोचने लगा कि आगे वह कुछ ऐसा करे कि रूपया गिरने की नौबत न आए। उसके गांजे की गंध से परेशान मैं बोला, “यार घिसई, तुम्हारा गाँजा छूट नहीं रहा..जबकि रूपया भी गिर रहा है…” यह सुन पहले तो वह सकपकाया, फिर नीचे इधर-उधर दायें-बायें देखा और फिर अपनी जेब टटोलकर खीं-खीं करते हुए बोला, “का गुरू रूपया कहाँ गिरा है? रूपया तो मेरी जेब में ही है..।”

जैसा कि बुद्धिजीवी लोग नासमझों पर झल्लाते हैं, ठीक वैसे ही मैं भी उससे झल्लाहट में बोला, “यार घिसई..तुम चाहे जितना घिस जाओ, लेकिन तुम्हें अकल नहीं आयेगी…रूपया तुम्हारी जेब से नहीं डालर से गिरा है…” मेरी बात पर अब वह खुल कर हँस पड़ा और बोला, “का गुरू..हमका ओत्ता मत बनावा…रूपया कतऊँ डालन पर फरsथैै..जउन डालन से गिर पड़े..? अऊर गुरू..! अगली बार महकऊआ गुटका खाए रहब..तs..ई गंजवा न महके..” उसकी बात पर मैंने अपना माथा पकड़ लिया..कहना तो चाहा कि “तुम..गांजे और गुटखे में ही चूर रहोगे..तुम दो हजार ओनइस नहीं समझ पाओगे..!तुम्हें दूर की सोच नहीं है..इसीलिए तुम रूपये का गिरना नहीं समझ पा रहे हो..” लेकिन कहने से मेरी हिम्मत जवाब दे गयी।

फिर भी घिसई को रूपये का गिरना समझाना जरूरी था! क्योंकि बात अब दो हजार ओनइस की चल निकली है। हालांकि मैं डालर के बजाय रूपए को किसी और चीज से गिराने की तरकीब पर विचार कर रहा था कि गाँजा के साथ उसके गुटखे की बात पर मुझे कोफ्त हो आयी। मैं समझ गया कि इसे समझाना बड़ा मुश्किल काम है और समझाने की गुंजाइश भी खतम.! अमेरिकनों का डालर गिरने से रहा, वे तो सौ डेढ़ सौ वर्ष आगे की बात सोचते हैं, जबकि हम पाँच साल की प्लानिंग वाली परम्परा से हैं, हमारा रूपया तो गिरता उठता ही रहेगा।फिलहाल रूपया उठाने की जगह जी डी पी बढ़ा दिया गया है..अब सारा कुछ बैलेंस !

इस बीच गांजे की महक को छिपाने के लिए घिसई महकऊआ गुटखे की गोमती की ओर लपक लिया था, और इधर मैं भी सर खुजलाते हुए पेट्रोल पंप की ओर। इस बार मैंने कार में चौबीस लीटर पेट्रोल भरवायी जो हाल के दिनों में मेरे लिए एक रिकार्ड की बात थी।

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.