अजन्मी बेटी की आर्तनाद
जन्म से पहले मुझे न मारो माँ
देकर जन्म धरती पर उतारो माँ
मैं भी देखूं रंग-बिरंगी दुनिया सारी
है यह कितनी सुन्दर,कितनी प्यारी ।
बनूंगी मैं आज्ञाकारी बेटी तुम्हारी
सुन लो माँ ये विनती हमारी
तुम भी तो हो मेरी तरह एक नारी
फिर क्यों मेरा जन्म है तुम पर भारी ।
तुम बिन व्यथा कौन समझेगा जननी
तुम हो माता मेरी दुर्गा रूपिणी
न समझो माँ तुम स्वयं को अबला
सृष्टि की रचयिता, नारी तुम सबला ।
तुम्हारी सेवा में करूँगी जीवन अर्पित
मेरे कर्म से होगा शीष तुम्हारा गर्वित
अक्षुण्य रहेगा सदा सम्मान तुम्हारा
रहा तुमसे माँ ये वादा हमारा ।
अगर देती रहेंगी माताएँ बेटियों का बलिदान
डोल उठेगा फिर सृष्टि का सिंहासन
खण्डित होगा विधि का विधान
नारी बिन धरती होगी एक रेगिस्तान ।
जब होगी न कोई भाई की बहन
कैसे मनेगा फिर ये रक्षा बंधन
सूना रह जायेगा भाई का मन-आंगन
जैसे फूल बिन कोई उजड़ा चमन ।
पिता के घर से कभी उठेगी न डोली
जीवन होगा ऐसा जैसे रंग बिन होली
किसी के आंगन बजेगी न शहनाई
होगी न जब जग में कोई तरुणाई ।
यग-युग में पिता का आंगन
किया है बेटियों ने रोशन
युद्ध,राजनीति या क्षेत्र विज्ञान का
फहराया बेटियों ने विजयी पताका ।
फिर क्यों दुखी होता परिजन का मन
जब होता घर में बेटी का आगमन
गर्भ में ही उसकी नृशंस हत्या हो जाती
बेटे के जन्म पर दुनिया उत्सव मनाती ।
प्रश्न ये खटखटाकर मन का द्वार
चेतना को उद्वेलित करता बार बार
अपने रक्त से ये कैसा बैर भाव
बेटी को मिलती नहीं ममता की छाँव ।
समाज के आगे घुटने न टेको माँ
नारी पर हो रहे अन्याय को रोको माँ
तोड़ो बेड़ियां जो पांवों में तुम्हारे पड़ीं
थाम लो हाथ मेरा,मैं अकेली हूँ खड़ी ।
— ज्योत्स्ना पॉल