कविता

भूख

 

भूखी है जिंदगी मेरी साहेब!
कुदाल और कस्सी का
वजन नहीं देखती अब
ना मुड़के देखती है पीठ पर
सरकते पसीने को
भूखी है जिंदगी मेरी साहेब!

मूक बधिर बना दिया है भूख ने
मंचों से दिए जाने वाले भाषण
कभी नहीं पहुंचते हमारे पास
कंकड़ ,पत्थर ,कोयला और कांटे
मखमली पैर की सतह को
लोहा बना दिया है इन्होंने
पेट की आग को रोटी बुझाती है
तो भगवान रोटी ही हुई ना!!!
सुबह फिर वक्त के थपेड़ों के साथ
दो-दो हाथ करने होते हैं
क्या सुनोगे हमारी कहानी !!!
हम डरते नहीं साहब
थोड़ा सा सिसकते हैं अकेले में
क्योंकि हमारी जिंदगी भूखी है साहेब!

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733