कहानी

प्लास्टिक का दानव

बालकथा

प्लास्टिक का दानव

बबलू, मुन्नू, राजू, टिंकू, बबली, पिंकी, पप्पू, बंटू और बंटी सभी घर के पास मैदान में बैट बॉल खेल रहे थे। अचानक राजू ने बॉल को बहुत तेज़ मारा और बॉल हवा से बातें करती हुई उड़ चली।

‘अरे ये तो मैदान के उस कोने में चली गयी जहाँ जाने में सबको डर लगता है’ …पिंकी बोली

‘अब बॉल कौन लायेगा? मैं तो बिलकुल नही जाऊंगा मेरी मम्मी ने मना किया है’। बंटू बोला

‘मैं भी नही जिसने फेंकी वो लाये’। बबली ने कहा

‘ठीक है तुम सब डरपोक हो पर मैं किसी से नही डरता, मैं ले आऊंगा बॉल’, कहता हुआ राजू मैदान के उस कोने की ओर चल दिया जहाँ जाने की सख्त मनाही थी।

‘हमे राजू को अकेले नही जाने देना चाहिए, वो हमारा दोस्त है उसे अगर कुछ हो गया तो? चलो सब मिल कर बॉल ढूंढेंगे, जल्दी मिल जायेगी।’ पप्पू की बात सबको ठीक लगी और सब बॉल ढूंढने चल पड़े।

अभी बच्चों ने बॉल ढूंढनी शुरू ही की थी कि अचानक बहुत तेज़ दुर्गंध और आवाज़ के साथ हलचल हुई और ये क्या…? देखते ही देखते एक विशालकाय दानव बच्चो के सामने खड़ा हो गया।

एक बार को तो बच्चे डरे पर फिर सारा साहस बटोर कर उन्होंने उस विशालकाय आकृति से पूछ ही डाला …. कौन हो तुम ?

‘हा हा हा… मुझे नही पहचाना मैं हूँ दानव… प्लास्टिक का दानव’ अट्हास करती हुई आकृति बोली

‘पर तुम इतने भद्दे इतने बदबूदार और भयानक क्यों हो? तुम्हे देख कर ही बुरा लग रहा है। तुम्हे तो समाप्त कर देना चाहिए… ‘ पिंकी बोली

‘मैं दानव हूँ दानव … प्लास्टिक का दानव्। मुझे कोई खत्म नही कर सकता … मैं हज़ारों साल तक यूँ ही जीवित रह सकता हूँ। मेरा महाजाल तो पूरी दुनिया में फैल गया है … मानव तो पूरी तरह इसमें फँस चुका है।’

अरे ऐसा कैसे कह सकते हो तुम? हम तुम्हारे जाल में कहाँ फँसे? बताओ तो ज़रा… ‘ बंटी ने पूछा

क्यों तुम प्लास्टिक की बोतल, लंच बॉक्स, बैग इस्तेमाल नही करते ? तुम्हे पता है… प्लास्टिक की पन्नियों और बोतल में रखे सामान और पानी में रसायन और ऐंटिमनी, कैडमियम, पारा, लेड जैसी भारी धातुओं की मात्रा अधिक होती है। जिसके प्रयोग से तंत्रिका सम्बन्धी रोग, कैंसर और कई अन्य प्रकार की असाध्य बीमारियों को बुलावा मिलता है।

‘हैं… ये सब तो मुझे पता ही नही था… तुम तो सच में बहुत खतरनाक हो…. अरे मेरी मम्मी तो मेरे छोटे भाई को प्लास्टिक की बोतल से दूध पिलाती हैं तो क्या उस से भी कुछ नुक्सान है? टिंकु ने कहा

‘हा हा हा… क्यों नही… बच्चों की दूध की बोतल में पाए जाने वाले बी पी ए से ऑटिज़्म, डाइबिटीज़ मस्तिष्क सम्बन्धी गम्भीर रोग उतपन्न करने की मैं पूरी कोशिश करता हूँ… ‘राक्षस हंसा

तभी बबलू को कुछ याद आया -‘हाँ आज मेरी टीचर ने बताया था कि मनुष्य, जीव जंतु और प्रकृति का दुश्मन है प्लास्टिक। सड़क पर इधर उधर पड़ी हुई प्लास्टिक का कचरा जानवरों के पेट में पहुंच कर उनकी जान ले लेता है। यही अगर मिटटी में चला जाये या दबा दिया जाये तो मिटटी को बंजर कर देता है और नदी नालों और सीवर में जा कर ‘ड्रेनेज सिस्टम’ को भी बन्द कर देता है, जिससे बरसात के दिनों में जल भराव और बाढ़ की स्थिति उतपन्न हो जाती है। ‘

तभी बंटी भी बोली… ‘और मेरी मैडम ने तो ये भी बताया कि प्लास्टिक ने अब समुद्र तक पैर पसार लिए हैं। समुद्र से निकले कुल कचरे का 90 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक है। समुद्र में प्लास्टिक जाने की वजह से समुद्री जीव बहुत सी बीमारियों से ग्रस्त हो कर मर रहे हैं। मृत जीवों की जाँच के दौरान उनके पेट से भारी मात्रा में प्लास्टिक का कचरा निकाला गया है।’

‘अगर इस राक्षस को जला कर मार डालें तो ??’ बंटू ने पूछा

राक्षस बोला- ‘हा हा हा… तुम मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते। जलाओगे तो जल कर मैं जहरीले गैसों से भरे धुंए उगलूंगा जो वायु मण्डल के लिए बहुत ही खतरनाक है। मुझसे छुटकारा पाने का बस एक ही तरीका है… प्लास्टिक का न्यूनतम प्रयोग, प्लास्टिक की जगह पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का प्रयोग जैसे जूट, कपड़े या कागज़ के बैग, कुल्हड़ की चाय, स्टील के टिफिन और बोतल।
पर जाओ बच्चों ये सब तुम्हारे बस का नही … तुम जा कर खेलो’

‘क्यों ऐसा कहते हो? क्यों हम कुछ नही कर सकते?’ बच्चों ने कहा। हमने तय कर लिया है…

हम बच्चे ही आगे बढ़ेंगे….
दानव तुमसे युद्ध लड़ेंगे…
ये जानलेवा जाल तोड़ेंगे…
तुम्हारा प्रयोग छोड़ेंगे…
कपड़े का बैग रखेंगे साथ…
प्लास्टिक को कहेंगे भाग…
कचरे को सही जगह दिखाएंगे…
मम्मी पापा को भी समझायेंगे…
घर घर जा के अलख जगायेंगे…
धरा को प्लास्टिक मुक्त बनाएंगे…

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा