भजन/भावगीत

मां दुर्गे सुस्वागतम

दुर्गति परिहारिणी
असुर विनाशिनी
महाशक्ति रूपिणी
आओ बैठो अपने आसन में।
जग कल्याणकारिणी
दस भुज धारिणी
सुंदर मृग नयनी
चरण धरो धरा प्रांगण में।

हस्त खडग शोभित
रूप करें सबको मोहित
जन जन में है चर्चित
रूप अलौकिक मनभावन।
करुं तेरी आराधना
चढ़ाऊं पग अर्चना
भक्ति पुष्प कर अर्पणा
बन जाए धरा आज पावन।

मिट जाए मन तमस
करे ज्ञान को जो ग्रास
भरे सब उर तेजस
ऐसी हम पर कृपा करना।
खिले पुष्प समृद्धि का
हो विकास बुद्धि का
मिट जाए पाप जग का
शीश हमारे हाथ धरना।

मां दुर्गे सुस्वागतम
उतारे तेरी आरती हम
रह जाए अगर कुछ कम
हमारी भूल को क्षमा करना।
हमें संतान मान
देना अभय दान
करूं तेरा जय गान
इतनी कृपा हम पर करना।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com