मां दुर्गे सुस्वागतम
दुर्गति परिहारिणी
असुर विनाशिनी
महाशक्ति रूपिणी
आओ बैठो अपने आसन में।
जग कल्याणकारिणी
दस भुज धारिणी
सुंदर मृग नयनी
चरण धरो धरा प्रांगण में।
हस्त खडग शोभित
रूप करें सबको मोहित
जन जन में है चर्चित
रूप अलौकिक मनभावन।
करुं तेरी आराधना
चढ़ाऊं पग अर्चना
भक्ति पुष्प कर अर्पणा
बन जाए धरा आज पावन।
मिट जाए मन तमस
करे ज्ञान को जो ग्रास
भरे सब उर तेजस
ऐसी हम पर कृपा करना।
खिले पुष्प समृद्धि का
हो विकास बुद्धि का
मिट जाए पाप जग का
शीश हमारे हाथ धरना।
मां दुर्गे सुस्वागतम
उतारे तेरी आरती हम
रह जाए अगर कुछ कम
हमारी भूल को क्षमा करना।
हमें संतान मान
देना अभय दान
करूं तेरा जय गान
इतनी कृपा हम पर करना।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।