गीतिका/ग़ज़ल

दहन

मारा था युगों पहले पर कहां मरण होता है
सालों साल जलाते पर  कहां दहन होता है
अब भी तो देवी का घर घर में पूजन होता है
वहीं कीसी कोने में नारी का शोषण होता है
मारते हैं अब भी कन्या अस्तीत्व भ्रूण में
कहीं कहीं पर उसका दहेज मरण होता है
परिवार को लेके दिनभर धुरी पे घूमती है
फिर भी उसकी नाकारी का वर्णन होता है
जाने कितने ऐब गिनाए जाते हैं उसमें
राहों में द्रौपदी का अब  चीरहरण होता है
आंखें खोलें हम सब अपने अंतश में देखें
तब असली के रावण का सही दहन होता है
पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है