लघुकथा

प्रार्थना

आज मंगरू को खुद अपने पर प्रसन्नता हो रही थी या अपनी प्रार्थना की सफलता पर, वह समझ नहीं पा रहा था, फिर भी वह मन-ही-मन बार-बार भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा था, जिसने उसकी प्रार्थना की लाज रख ली थी. वह स्मृतियों के झूले में झूल रहा था.

मंगरू अपने गांव का सम्मानित किसान था. पूरा गांव उसकी समझदारी और सहायता करने की भावना का लोहा मानता था. हर कोई उससे सलाह लेने आता था. मंगरू को कभी भी घमंड नहीं होता था, वह सबकी बात ध्यान से सुनकर अच्छी तरह सोचता और कभी उसी समय समस्या का हल सुझा देता, कभी बाद में बताने को कह ध्यानमग्न हो जाता. वह समस्या का हल सुझाने के लिए भगवान से प्रार्थना करता और अक्सर उसमें सफल भी होता था.

आज भी सुबह-सुबह वह साप्ताहिक हाट के लिए निकला था. पास के ही गांव में उसकी दोनों बेटियां ब्याही थीं, इसलिए उसने दोनों से मिलकर साप्ताहिक बाजार जाने की ठानी. घर से बेटियों की पसंद की चीजों की दो गठरियां बनाकर वह पहले छोटी बेटी के पास पहुंचा. उसकी खैरियत पूछकर उसने उसे सामान दिया और बाजार से क्या लाने की बात पूछी.

”पिताजी, मुझे बाजार से कुछ नहीं चाहिए, बस आप एक काम करिएगा. आज सुबह से आसमान में काले-काले बादल छाए हुए हैं, भगवान से प्रार्थना करिएगा, कि आज न बरसें, वरना हमारा ईंटों का भट्टा बैठ जाएगा.” मंगरू ने अच्छा कहा और सड़क पार बड़ी बेटी के पास चल पड़ा.

बड़ी बेटी बहुत चिंतित दिखाई दे रही थी, उसने पिताजी से भगवान से प्रार्थना करने को कहा, कि रोज काले-काले बादल छाते हैं, आस जगाकर बिना बरसे चले जाते हैं, आज पानी झमाझम बरसे, ताकि उसकी गन्ने की खेती बरबाद होने से बच जाए. मंगरू ने उससे भी अच्छा कहा और हाट के लिए चल पड़ा.

शाम को हाट से लौटते वक्त वह फिर बेटियों के लिए खरीदा हुआ सामान उन्हें देने गया. पहले बड़ी बेटी के पास गया. वह बहुत खुश थी. झमाझम बारिश ने उसके खेतों को भलीभांति नहला दिया था.

फिर छोटी बेटी के पास गया. वह भी बहुत खुश थी. उसका ईंटों का भट्टा पककर तैयार हो गया था, अब बारिश भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी.

मंगरू ने भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया, जिसने उसकी विश्वास से की गई प्रार्थना ”जैसी तेरी मर्जी” स्वीकार करके सड़क के एक ओर झमाझम बारिश की थी, दूसरी ओर एक बूंद भी नहीं बरसाई थी. मंगरू की अरहर की खेती को पानी की आवश्यकता नहीं थी, वह भी बारिश से बच गई थी. सबके खुश होने से वह खुश भी था और विस्मित भी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “प्रार्थना

  • लीला तिवानी

    पानी की सबसे अधिक खपत, हमारे उपयोग का 85 प्रतिशत फसलों को उगाने में होता है। कुछ जिंसों की फसलों में अधिक पानी की आवश्यकता होती है कुछ में कम। जैसे अरहर और गन्ना। अरहर के लिये बहुत कम पानी जबकि गन्ने में बहुत अधिक पानी की खपत होती है। कुछ फसलें खरीफ में जो अप्रैल से सितम्बर महीने तक रहती हैं और कुछ रबी में बोई जाती हैं जो अक्टूबर से मार्च तक रहती हैं।

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