कांच के टुकड़ों पर …
वो कांच के टुकड़ों पे नँगे पाँव रोज़ चल रहा है।
ख्वाब एक बेशर्म फिर भी पलकों तले पल रहा है।
माँ बाप के साए से एक महरूम बच्चा देखिये,
एक पल मचला था खुद ही दूजे पल बहल रहा है।
फुटपाथ की ठिठुरन से बचने का बहाना ही सही,
एक फटा सा टाट भी उसको लग मखमल रहा है।
छोड़ दे सारी कुढ़न जीने का तरीका बदल,
झूम ले तू भी ज़रा कि तुझसे कोई जल रहा है।
आँखों में आँसू नहीं आँसू में आंखें बह चली,
न कुरेदो और अब हाँ सबका बीता कल रहा है।
उसके हुस्न और अदा की बात कोई क्या करे,
जब से वो सँवरा तभी से आईना सम्भल रहा है।
और न अब सोच तू एक रोज़ जी भर रो ही ले,
खोखली मुस्कान से तू खुद को ही तो छल रहा है।