कविता

नीला सा गगन उधार लिया…

नीला गगन उधार लिया,
थोड़ी सी धरा रहे मुझमे।
थोड़ी अग्नि थोड़ा सा जल,
मीठी सी हवा बहे मुझमे।

इस क्षण तो हूँ अगले में नहीं,
हूँ आज यहां कल पता नहीं,
है नाम अभी कल निशां नही,
थोड़ी सी निश्चितता संग है,
छुपा थोड़ा भरम रहे मुझमे।

तिनके सा तन बादल सा मन,
उस पर कागज़ जैसा जीवन,
ठनी भाग्य से भी अनबन,
फिर भी न रुकने झुकने दे,
कोई है जो छुपा रहे मुझमे।

भीतर भीषण संग्राम चले,
फिर भी होठों पर मौन पलें,
मेरे संग मेरे प्रारब्ध चलें,
कैसे कदमों को रोकूँ जब,
विश्वास का बीज रहे मुझमे।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा