हास्य व्यंग्य

भोले बाबा के साथ राजनीति

वैसे मैं खोने-पाने का तो नहीं, लेकिन अपने द्वारा किए वादे का हिसाब जरूर रखता हूँ, आखिर हम त्रेता से कलियुग तक “प्राण जाय पर वचन न जाए” या फिर “वादा किया है, तो निभाना पड़ेगा” जैसी मान्यताओं को कांटिन्युअसली लेकर चलने वाले देश से जो हैं!! तो, अकसर साल बीतते-बीतते, मैं मूंड़ी घुमाकर पीछे छूटते जाते बेचारे, कभी न लौटकर आने वाले ईस्वी सन् को इसलिए निहारता हूँ, कि कहीं कोई मेरा किया हुआ वादा तो पीछे नहीं छूटा जा रहा, और जिसे मैं पूरा न कर पाया होऊँ!

तो इस बार भी मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, ले देकर एक वादा है जो अभी भी अपने पूरा होने के इंतजार में पिछले पच्चीस सालों से मेरे पीछे पड़ा हुआ है ! और मैराथन की मशाल की भाँति इसे अपने हाथ में लिए हुए मैं साल दर साल आगे बढ़ाता जा रहा हूँ। कभी-कभी स्वयं मुझे अपने इस वादे को लेकर बड़ी कोफ्त होती है, कि न जाने किस घड़ी में मैंने यह वादा किया था, जो पूरा होने का नाम नहीं ले रहा..! बिल्कुल किसी राजनीतिक दल के चुनावी घोषणापत्र में शामिल संकल्प जैसा ।

असल में क्या है कि आज से पच्चीस-छब्बीस साल पहले नौकरी की तलाश में मध्यप्रदेश इंटरव्यू-फिंटरव्यू के चक्कर में गया रहा होऊँगा और वहीं पर उज्जैन में बाबा भोले नाथ से वादा कर बैठा था कि “भोले बाबा नौकरी-फौकरी मिल जाएगी तो एक बार आपका दर्शन लाभ लेने मैं जरूर आऊँगा” बस यही था मेरा वादा। वैसे तो मैं ठहरा यूपी वाला, लेकिन यह वादा मैंने मध्यप्रदेश की नौकरी के लिए किया था, और भोले बाबा भी ठहरे भोले बाबा, इस वादे से ऐसा प्रसन्न हुए कि मेरे गृह प्रदेश में ही मुझे नौकरी दे बैठे। इसीलिए मध्यप्रदेश में नौकरी नहीं मिलने पर भी मैं अपने वादे से नहीं मुकरा और तभी से इसे निभाने के चक्कर में साल दर साल संकल्पित हो उठता हूँ। इस तरह भोलेनाथ को लालीपॉप पकड़ाते आ रहा हूँ।

आप माने या न माने भोले-भाले लोगों के साथ जमकर राजनीति होती ही है, अब चाहे वह देश की जनता हो या फिर मंदिर में बिराजते भोले शंकर। ये दोनों ऐसे औढरदानी हैं कि भस्मासुर तक को वरदान दे देते हैं..!

वैसे भोले बाबा को वादे का डोज कुछ जियादा ही दे चुका हूँ। तो कई बार भगवान तेरे रूप अनेक सोचकर, अपने वादे से महादेव जी का ध्यान हटाने और उन्हें खुश करने के लिए अन्य विकल्पों पर भी जोर-अजमाइश कर लेता हूँ तथा आसपास के अंदिर-मंदिर चला जाता हूँ। हालाँकि इसमें भगवानों के बीच ही गुटबाजी पैदा करने के अपराधबोध के साथ इस बात से भी डर होता है कि कहीं गुटबाजी के चक्कर में भोलेनाथ जी मुझसे नाराज न हो जाएँ? लेकिन विष्णुजी, रामजी, कन्हैया जी, बजरंगबली, और तो और माँ पार्वती जी के अनेक रूपों का दर्शन कर मैं भोलेनाथ की इस नाराजगी की काट भी ढूँढ़ लेता हूँ और उस डर से निश्चिंत हो जाता हूँ! हाँ इन देवताओं के ही परिवार में फोड़-फाड़ मचा कर कुटिल नेता जैसे अपने नेतृत्व-कला पर मुस्कुरा उठता हूँ!! इसके बाद मुझे अपने द्वारा किए हुए किसी वादे-फादे की चिंता नहीं रह जाती। इस प्रकार वर्षों से मैं ऐसे ही भोलेबाबा के साथ राजनीति भी करता आ रहा हूँ।

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.