गीतिका/ग़ज़ल

दफ्न होने को दो ग़ज़ ज़मीन है बहुत

इस कागज़ी बदन को यकीन है बहुत
दफ्न होने को दो ग़ज़ ज़मीन है बहुत

तुम इंसान हो,तुम चल दोगे यहाँ से
पर लाशों पर रहने वाले मकीं* हैं बहुत

भरोसा तोड़ना कोई कानूनन जुर्म नहीं
इंसानियत कहती है ये संगीन है बहुत

झुग्गी-झोपड़ियों के पैबन्द हैं बहुत लेकिन
रईसों की दिल्ली अब भी रंगीन है बहुत

वो बरगद बूढ़ा था,किसी के काम का नहीं
पर उसके गिरने से गाँव ग़मगीन है बहुत

बस एक हमें ही खबर नहीं होती है
वरना ये देश विकास में लीन है बहुत

*मकीं-मकाँ में रहने वाला

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com