कविता

मन

काश ये मन न होता
तो तेरा ख्याल भी न होता
कितना रोकती हूँ इसे
फिरभी तेरी ओर चला जाता

और फिर शुरू होता
तेरी यादों का सिलसिला
पन्ना दर-पन्ना खुलता है
तुम्हारे साथ बिताए पलों का
एक एक लम्हा….

अजीब थी वो कशमकश
जब तुम्हारे करीब थी
मेरी धड़कनों का तेज होना
होठों कपकपाना
और फिर आहिस्ता से
तुम्हारा मुझे अपनी बाहों में भरना

उफ !
मर भी जाती अगर उस वक्त
तो गम न होता
जिंदगी मुकम्मल होती इश्क में

पर यूं तुम्हारा बिछड़ना
जुदाई की आग में जलाता है मुझे
आ जाओ कहीं से तुम
कि जी लूं फिर से एकबार मैं

तुम्हारे एहसासों को दिल में समेटे
उम्मीदों का दामन थामें
कर रही इंतजार….
लौटोगे तुम एकदिन

है तुम्हें, मेरे साथ बिताए
उस खास पल की कसम।

*बबली सिन्हा

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