गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उन्हे लज्जा नहीं आती उन्हे लज्जा न आने दो।
हमें सरहद पे जाकर के ज़रा सर काट लाने दो।

शहादत ये जवानों की नहीं हो रायगाँ हरगिज़,
किया इस काम को जिसने उसे जग से मिटाने दो।

बुजुर्गों ने लहू देकर बचाया था जिसे कल तक,
पसीना अब बहा कर के हमें उसको सजाने दो।

हमारे खून से होली जिन्होने आज खेली है,
खुद अपने खून से अब तो ज़रा उनको नहाने दो।

चलो चलते हैं सरहद पर वहाँ आकर जमे दुश्मन,
यहाँ नारे लगाते हैं उन्हें नारे लगाने दो।

— हमीद कानपुरी,

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - ahidrisi1005@gmail.com मो. 9795772415