गीतिका/ग़ज़ल

माना कि वक्त हमारा नहीं है

 

माना कि वक्त हमारा नहीं है।
पर थमना भी तो गंवारा नहीं है।।

मंज़िल एक रोज़ मिलेगी रख सबर।
किस्मत का अभी इशारा नहीं है।।

हिम्मत कर तैरता चल, न रुकना तू।
लगता है पास किनारा नहीं है।।

उस पल भी उम्मीदों की लौ जला।
जब तिनके का भी सहारा नहीं है।।

रंजिशें इतनी क्यों आईं दरमियाँ।
जाते जाते भी पुकारा नहीं है।।

शतरंज की चालों से लो कुछ सबक।
अपनों को कभी भी मारा नहीं है।।

जो लम्हा रूठा छूटा हाथ से।
आता वो ‘लहर’ दोबारा नहीं है।।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा