कहानी

संस्कार

जूही अपने ऑफिस में अपनी खूबसूरती के साथ साथ अपनी कार्यकुशलता एवं व्यवहार कुशलता के लिए जानी जाती है। उसके व्यक्तित्व की सौम्यता उसके परिधान से भी झलकती है। सुंदरता के साथ प्रतिभा का संयोग उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है। जब भी वह ऑफिस में आती है तो उसके गुणों की सुगंध चारों ओर फैलने लगती है। किसी सहयोगी कर्मचारी को कोई कार्य समझ में नहीं आता है तो सबसे पहले वह जूही के पास ही जाता है, सहायता मांगने। अगर कोई नया कर्मचारी आता है तो उसको भी कार्य समझाने की जिम्मेदारी जूही को दी जाती है और जूही उसे बखूबी निभा भी लेती है। अपने गुणों से जूही ने सहयोगी कर्मचारियों के ह्रदय में एक सम्मानजनक स्थान बना लिया है। उसकी मधुर मुस्कान की तो बखान सभी कर्मचारी करते हैं।

जूही के पिता रमेश बग्गा के अचानक हृदयाघात से मृत्यु होने के पश्चात उसे यह नौकरी मिली है। उसके पिता पंजाब नेशनल बैंक के एक कुशल और सहृदय प्रबंधक माने जाते थे। अपने पिता के सम्मान को किसी तरह की कोई ठेस ना लगे इसलिए जूही सदैव अपने कार्य के प्रति समर्पित रहती है।
रमेश बग्गा की पुत्री होने के कारण सभी जूही को सम्मान की नजर से देखते हैं। पिता का देहांत अचानक होने के कारण घर की सारी जिम्मेदारी अब जूही पर ही है। घर में उसकी मां और एक छोटा भाई है जो अभी स्कूल में ही पढ़ता है, इस कारण जूही का अभी तक विवाह नहीं हुआ है। माता माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार एवं शिक्षा के कारण जूही इस कठिन डगर पर चलने में आज सक्षम है।

पुराने बैंक प्रबंधक की पदोन्नति के पश्चात दूसरी जगह स्थानांतरण होने के कारण नया युवा प्रबंधक रोहित मेहता ने आज बैंक का कार्यभार संभाला है। पुराने प्रबंधक ने जाने से पहले सभी कर्मचारियों से रोहित मेहता का परिचय कराया। जब रोहित मेहता ने जूही से परिचय करते समय हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो जूही ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते किया। इस इस बात से रोहित मेहता को थोड़ा झटका लगा और अहम को चोट लगी। सबके सामने तो वह चुप रहा, परंतु.. बाद में उसने जूही को अपने कक्ष में बुलाया।
“बैठिए मिस जूही!” कुर्सी दिखाते हुए रोहित मेहता ने कहा।
“थैंक यू सर!” जूही ने बैठते हुए कहा।
सामने बैठी जूही की सुंदरता को देखकर रोहित मेहता बहुत प्रभावित हुआ। चेहरे की सोम्यता और सुंदर भारतीय परिधान को देख कर रोहित मेहता मन ही मन सोचने लगा “बहुत से ऑफिस में मैं प्रबंधक का कार्य करता आया हूं। बहुत से लोगों से मिला परंतु आज तक सुंदरता के साथ इतनी मृदुभाषी और इतनी संस्कारिक लड़की मैंने नहीं देखी।
बैंक प्रबंधक को चुप देखकर जूही असमंजस की स्थिति में आ गई। थोड़ी देर चुप रहकर उसने पूछा “सर.. आपने मुझे क्यों बुलाया है?”
“दरअसल..सबसे परिचय करते समय जब मैंने हाथ बढ़ाया तो.. आपने मुझसे हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़कर नमस्ते की। यह बात मुझे थोड़ी सी अटपटी लगी क्योंकि हम आधुनिक समाज के लोग हैं। समय काफी बदल गया है। हाथ मिलाने में कोई बुराई तो नहीं है। मैंने सबके सामने स्वयं को थोड़ा सा अपमानित महसूस किया।” रोहित मेहता ने थोड़ी सख्ती से बात की।
“माफ कीजिएगा सर, मैं व्यक्तिगत बात करना नहीं चाहती, परंतु.. मुझे बताना पड़ेगा कि मेरे पिता रमेश बग्गा भी शाखा प्रबंधक रह चुके हैं। उन्होंने जो भी संस्कार मुझे दिए हैं उन्हीं संस्कारों का मैं पालन कर रही हूं। ऐसा कोई कार्य करना नहीं चाहती जिससे कि उनके सम्मान को ठेस पहुंचे। मेरे विचार आपके विचार से भिन्न हो सकते हैं। किसी से हाथ मिला कर परिचय करना उचित है यह आवश्यक तो नहीं है। मेरे विचार से हाथ जोड़कर नमस्ते करना हमारे भारतीय सभ्यता और संस्कृति का द्योतक है। किसी अनजान व्यक्ति से हाथ मिलाना मैं उचित नहीं समझती।” जूही की बातों में भी थोड़ी सी सख्ती थी।
“आप बहुत खूबसूरत तो है ही गुस्से में और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही है।” रोहित मेहता ने मुस्कुराते हुए कहा।
अचानक रोहित मेहता की यह बेवकूफी भरी बात सुनकर रूही को और भी गुस्सा आया। वह गुस्से में ही बोल पड़ी “मैं आप को थैंक यू नहीं कहूंगी! इस तरह अपने कक्ष में बुलाकर मेरी खूबसूरती की तारीफ करना उचित नहीं है। यह किसी लड़की के लिए अपमानजनक बात है। मैं इस के सख्त खिलाफ हूं। इसे लड़कियों के साथ यौन दुराचार की संज्ञा दी जा सकती है। मैं चाहूं तो आपकी शिकायत भी कर सकती हूं। मेरे पिता को सभी ऊपर वाले अधिकारी जानते हैं और मुझे भी जानते हैं।” गुस्से से जूही का गुलाबी चेहरा लाल हो गया।
“अरे.. रे.. रे.. आप तो बुरा मान गई। किसी लड़की की खूबसूरती की तारीफ करने से लड़कियां तो बहुत खुश हो जाती हैं। आप तो नाराज हो रही है।”
“मैं ऑफिस में अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनने नहीं आती हूं, वह भी अकेली कक्ष में बैठ कर। काम करने आती हूं, और कोई सबके सम्मुख काम की तारीफ करें तो.. मैं खुश होती हूं।” जूही ने सपाट सा जवाब दिया।
“आप मुझे गलत समझ रही हैं। मेरा इरादा गलत नहीं था। आपको अगर बुरा लगा तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं। आज के इस आधुनिक युग में जहां लोग विदेशी सभ्यता का अंधानुकरण करने में लगे हुए हैं, वहीं पर आप जैसी लड़की भी है जो भारतीय सभ्यता के आकर्षण को कम नहीं होने दिया! चाहे वह अपने व्यवहार में हो या फिर परिधान में। मैं आपके व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित हूं। आपके पिता का सम्मान तो करता ही हूं, साथ साथ मेरे मन में आपके प्रति भी सम्मान बढ़ गया।”
“नारी सदैव सम्मानीय होती है चाहे वह विदेशी हो या देशी। रहा सवाल अंधानुकरण का तो हम केवल परिधान का अंधानुकरण करते हैं उनकी क्षमताओं का नहीं। जो नारी अपना सम्मान स्वयं नहीं करती, उसे दुनिया कभी सम्मान नहीं करती। अपना सम्मान स्वयं को बनाए रखना पड़ता है। नारी अगर प्रथम कदम पर ही पुरुषों के गलत कार्य का पूरी दृढ़ता से विरोध करें, तो.. शायद समाज में नारियों के प्रति हो रहे अन्याय को काफी हद तक रोका जा सकता है। आपके सम्मान का सम्मान करती हूं! परंतु मेरी एक प्रार्थना है कि आगे से आप किसी लड़की को कक्ष में बुलाकर उसकी सुंदरता की प्रशंसा करने के बजाय सबके समक्ष उसकी कार्य क्षमता की प्रशंसा करिए। इससे उसके मन में कार्य करने के प्रति उत्साह और बढ़ेगा। कार्य की गुणवत्ता बढ़ेगी और लोगों को खुशी भी मिलेगी। सर.. मुझे अब आज्ञा दीजिए। बहुत सारे कार्य निपटाना है फिर घर भी जाना है।”
“जी.. अवश्य, आप जा सकती हैं प्लीज। आज आपसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। मैं वचनबद्ध होता हूं कि आपने जो भी सुझाव मुझे दिया है उस राह पर चलूंगा। आगे से आपको कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।” रोहित मेहता ने बड़ी विनम्रता से कहा।
“सुझाव नहीं यह मेरे विचार हैं। धन्यवाद सर! मेरी बातों को इतना सम्मान देने के लिए।” आज्ञा मिलते ही जूही कमरे से बाहर निकल गई।

उसको जाते हुए रोहित मेहता देखता रहा और सोचता रहा “सचमुच बड़ी दृढ़ निश्चय वाली लड़की है। माता पिता ने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। सभी लड़कियों को इस तरह निडर होना चाहिए ताकि पुरुष कोई भी गलत आचरण करने का साहस ना कर सके।”
रोहित मेहता रूही के विचार से प्रभावित तो था ही, साथ ही उस की कार्यकुशलता एवं व्यवहार कुशलता को देख कर उसके मन में और सम्मान जाग उठा। जब भी कोई कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता तो सबसे पहले वह जूही को ही याद करता क्योंकि अपनी निपुणता तथा इमानदारी से जूही उस कार्य को दिए गए समय सीमा के भीतर ही संपन्न कर देती।
अपने प्रति रोहित मेहता का यह व्यवहार देख कर जूही गर्व का अनुभव करती और उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान बिखर जाती। खुशी से उसकी आंखें भर आती और अपने पिता के प्रति उसके मन में सम्मान और बढ़ जाता। वह मन ही मन कहती “पापा मैं आपके सिखाएं हुए रास्ते पर चलने का प्रयास कर रही हूं। आप ऊपर से देख रहे हैं ना सब? आप अपनी जूही से प्रसन्न है ना? आपकी जूही कमजोर नहीं है। जैसा आप मुझे कहते थे कि लड़कियों को सदैव निडर होकर अन्याय का विरोध करना चाहिए। मैं निडरता से सभी मुश्किलों का सामना करने का प्रयास करती हूं पापा! कभी कोई गलत कदम उठाऊं तो आप मुझे रोकना और मुझे सलाह देना कि मुझे किस ओर जाना है।” आंखों की कोरों को भीगाती अश्रु की बूंदों को अपनी उंगलियों से पोंछते हुए, जूही निकल पड़ी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए..!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com