कविता

छंदमुक्त काव्य

“विधा-छंदमुक्त”

रूठकर चाँदनी कुछ स्याह सी लगी
बादल श्वेत से श्याम हो चला है
क्या पता बरसेगा या सुखा देगा
है सिकुड़े हुए धान के पत्तों सी जिंदगी
उम्मीद और आशा से हो रही है वन्दगी
आज की मुलाकात फलाहार सी लगी
रूठकर चाँदनी कुछ स्याह सी लगी।।

वादे पर वादे सफेद झूठ की फली
क्वार के धूप में श्याम हुई सुंदरी
अरमानों की फसल उगाता है कोई
सूखता है किसान हकीकत के हाथ
राजनीति के पुजारी कुर्सी के साथ
नौटंकी का नायक नायिका की गली
रूठकर चाँदनी कुछ स्याह सी लगी।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ