गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-मैं अंबर में हूँ

कहने को तो घर में हूँ.
पर दिन-रात सफ़र में हूँ.

मेरी नज़र में वो न सही,
पर मैं उसकी नज़र में हूँ.

तू है जोड़ – घटाने में,
मुझको देख, सिफ़र में हूँ.

काम ग़लत से जब तू डरे,
मैं तेरे उस डर में हूँ.

मन की आँखें खोल ज़रा,
मैं हर एक बशर में हूँ.

तू पोथी में खोज रहा,
मैं ढाई आखर में हूँ.

यादों की ख़ुशबू फैली,
फूलों के बिस्तर में हूँ.

तन धरती पर है लेकिन,
मन से मैं अंबर में हूँ.

डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9140282859