माथे पर लाल बिंदी
माँग में लाल सिंदूर
तन पर रहती साड़ी
मुख पर तेज
वाणी में ओज
डर का कोई शिकन नहीं
कभी प्रखर
कभी मृदुभाषी
कभी तीखे तेवर
कभी नरम शायरी
ऐसा ही था अंदाज़
कुछ वरिष्ठ नेता
“सुषमा स्वराज” का
हो मोर्चा घर का
या संसद का
देश का या विदेश का
सब में निपुणता थी
भरी कूट कूट कर
जीती हर उत्सव
हर त्योहार भरपूर
हो तीज या करवाचौथ
एक सशक्त महिला
एक सशक्त नेता
एक सशक्त वक्ता
एक संपूर्ण जीवन संगिनी
एक ममतामयी माँ
ऐसे अदभुत चरित्र की
धनी “सुषमा स्वराज”
लाल जोड़े में दुल्हन सी सजी
हो गयी विदा कर आँखे नम कई
क्या छोटा क्या बड़ा
क्या करीबी क्या दूर
क्या पुरुष क्या महिला
आज सब थे मौन देख
शांत पार्थिव शरीर
अपने प्रिय नेता की
जिसकी आवाज़ न देगी
सुनाई अब कभी
न ही दिखेगी वो मृदुल
मंद मंद मुस्काती हँसी
और कितना कुछ कहती
दो आँखे।।
सदा के लिए आज विलीन
हो गयी पंचतत्व में
शख्शियत एक अज़ीम।।
— मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा