हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – नेताजी का स्वर्गवास

नारद जी पृथ्वी पर भ्रमण करने के बाद नारायण ! नारायण !! उच्चारण करते हुए विष्णु लोक पधारे ,तो उनके हाथ में पंद्रह -बीस पृष्ठों
का एक पुलिंदा -सा देख भगवान विष्णु ने पूछा – ‘अरे ! नारद जी ,यह तुम्हारे हाथों में क्या है ?’
नारद जी बोले -‘नारायण ! नारायण !! अभी – अभी मैं एशिया महाद्वीप के एक देश भारत से आ रहा हूँ। एक अख़बार विक्रेता से जिज्ञासा वश ये पुलिंदा ले आया । वहाँ के लोग इसे अख़बार , समाचार पत्र , न्यूज़ पेपर जैसे नामों से संबोधित करते हैं।’
विष्णु भगवान पूछने लगे – ‘आपने इसे पढ़ा कि इसमें क्या लिखा है ?’
‘नारायण ! नारायण !! चलते -चलते थोड़ा शीर्षकों पर दृष्टिपात किया था। सबसे ऊपर के पृष्ठ पर बड़े- बड़े अक्षरों में लिखा देखा कि वहाँ के किसी राजनेता मंत्री का स्वर्गवास हो गया है।’
‘ये भारत के अखबार वाले भी असम्भव, मिथ्या और कपोलकल्पित समाचार अपने मन से छाप देते हैं। भला ये भी कोई बात हुई कि कोई नेता स्वर्ग में प्रवेश भी कर सके ? यह तो सर्वथा झूठ और चापलूसी भरा छद्म समाचार है । नेताओं के पास मात्र शोषण , अन्याय , झूठ, कपट , बेईमानी , अत्याचार, के अतिरिक्त भी कोई काम है? हत्या , बलात्कार जैसे जघन्य दुष्कर्म इन्हीं की छाया तले होते हैं । ये स्वयं करते हैं और अपने पालतू गुर्गों से कराते हैं।ये सच्चे अर्थों में इन्हीं के नेता हैं , जननेता नहीं हैं। अपने आतंक और बाहुबल से डरा धमका कर वोट बटोरने की कला में कुशल ये सभी राजनेता कोई भी दूध का धुला नहीं है। जिसके दामन पर कोई दाग नहीं, वह नेता हो नहीं सकता। अन्याय और अन्य आय पर निर्भर न हो , वह नेता हो नहीं सकता।।’ विष्णु भगवान ने नारद जी को बताया।
‘नारायण ! नारायण !! प्रभुजी आप एकदम सही कहते हैं ।-नारद जी ने समर्थन करते हुए अपना मत व्यक्त किया।

‘केवल झूठा सम्मान देने के लिए इन्हें स्वर्गवासी छाप दिया जाता है।ऐसा तो किसी बुरे से बुरे नेता के लिए नहीं लिखा या कहा जाता कि अमुक नेताजी नरकवासी हो गए। स्वर्गवासी लिखना तो मात्र एक ढर्रा है , लकीर पीटना है।अपने जीवन में जितने पाप और दुष्कर्म जितने एक नेता करता है , उतने पाप और दुष्कर्म डाकू और हत्यारे भी नहीं करते।डाकू और हत्यारे तो प्रायः अपनी जवानी में ही करते हैं , लेकिन इन्हें साठ के बाद जवानी आती है और मरने तक इसी प्रकार के दुष्कर्म करते हुए विलासिता औऱ मदोन्मत्त हालत में जीवन के आनन्द का सुखोपभोग करते हैं। दुनिया के देखने में ये सर्व बुद्धिमान ,गुणवान, कलाकार , ज्ञानी और धर्मावतार दिखाई देते हैं।  इनकी हालत ठीक वैसी ही है जैसे विष्ठा पर मख़मल लपेट दी गई हो। इनके पर्दे तो यहाँ हमारे बने हुए नरकों में ही हटाये जाते हैं। जब इनके कुकर्मों के काले कारनामों से उन्हें नंगा किया जाता है। दूध का दूध और पानी का पानी तो हमारे चित्रगुप्त जी के चिट्ठों में होता है। जहाँ नेता सिर्फ रोता है , चिल्लाता है , बिलखता है। जब उन्हें कुम्भीपाक की आग में झोंका जाता है , तब सोना और पीतल का भेद स्वतः सामने आ जाता है। वह सहज ही स्वीकारता है कि उसने जो
कुछ भी किया, गलत ही किया।’
‘बिके हुए चापलूस पत्रकार , अखबारों के मालिक और संपादक , नेताओं के अंधे भक्त सब एक ही थैली के चट्टे -बट्टे हैं। उन्हें इन झूठी खबरों के छापने के पैसे जो मिलते हैं। फिर जो चाहो लिखवा लो इनसे। इसी का नाम लोकतंत्र है। मूर्खों के द्वारा , मूर्खों के लिए चलाया जाने वाला तंत्र (जाल) ही मूर्ख तंत्र (लोकतंत्र) है। यदि 100 मूर्ख एकतरफ मत कर दें तो यहाँ गधे को घोड़ा सिद्ध करते हुए राजा मान लिया जाता है। जिसे ये लोकतंत्र कहते हैं। इस तंत्र में बुद्धि औऱ बुद्धिमानों का कोई भी महत्व नहीं है। लकीर के फ़क़ीर बने रहो , सही बात  मत कहो , जितना भी हो सब सहो । यही सब इस तंत्र की परिभाषा के तत्व हैं।’ विष्णु भगवान ने एक साँस में सब कुछ कह डाला।
इस पर नारद जी कहने लगे – ‘नारायण ! नारायण !! हे प्रभो ! आज आपने मेरे प्रज्ञा चक्षुओं को खोल दिया है। अब मैं सब कुछ जान और समझ गया हूँ। नारायण ! नारायण !!’ और नारद जी पुनः अपनी लोकयात्रा के भ्रमण पर प्रस्थान कर गए।

डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040