धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

लोक संस्कृति से मिलता है संस्कार

छात्रों में गजब की संघर्ष करने,परिस्थति से लड़ने के साथ-साथ अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए जुझारूपन होता है। विशेषर ग्रामीण छात्रों में, इनका संघर्ष प्रायः बचपन से ही शूरू हो जाता है।बस निखारने के लिए थोडी देख रेख की जरूरत होती है। गाँव की लोक संस्कृति से इनका लगाव शूरू से होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखते गाँव में ये पलते है बचपन में स्कूल और कोचिंग के साथ घर और खेतो में काम मवेशियों की देखभाल और पढाई करना तो पडता ही है साथ ही गरीबी से जूझना भी पडता है न मन पसंद कपडे होते और न खाने की मनपसंद चीजें, दिक्कतों से नित रू-ब- रू होकर जैसे तैसे मैट्रिक तो गाँव में पास कर लेते हैं फिर शहरो में एडमिशन और खाने की भी गंभीर संकट से गुजरना होता है, पर इतनी छोटी उम्र में भी इनकी परिपक्वता देखते ही बनती है।जो इन्हें लोक नाटको और पौराणिक कहानियो के जरिये बचपन में मिलता है।वही इनकी स्टेमिना को बरकरार रखता है।साथ ही साथ हमारे पर्व त्योहारो पर उनकी आस्था और बीतते वक्त के साथ प्रगाढ होता जाता है जो कही न कही उन्हें आत्मबल और लोगो से जोडता जाता है साथ ही साथ उनका संस्कार भी अच्छा हो जाता है।समाजिक गतिविधियों का ज्ञान जितना बढेगा संस्कार उतने ही निखरेंगे और सफलता मिलेगी।
पिताजी किसी तरह कर्ज लेकर या खेतो को गिरवी रखकर पढाई कराते है । विद्यार्थी भी चित से पढता है पर मन तो शहर की रंग विरंगी दुनिया देखकर हर कदम पर खर्च करना चाहता है।दोस्तो के आगे कई बार लज्जित होना पडता है। शहर की चाटूकारिता से अनभिज्ञ गाँव का लड़का मन मसोस मसोस कर फिर कभी के लिए टाल जाता है।दरअसल सीमित पैसे जो उसके पढाई के लिए दिए जाते उसकी जिम्मेदारी को निभाकर वो सिर्फ अपनी मंजिल की ओर देखता रहता है। कभी भूलचूक से कुछ खर्च हो भी जाता है तो वह अफसोस करता है। अपने पिता के परिश्रम के लिए सोचता भी है।शहर के माहौल में धीरे धीरे वह गति पकडता है।बोलचाल भाषा को लेकर भी दिकक्ते आती है जिसके कारण लज्जित होकर नित सीखना पड़ता है। इसी तरह कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभवो के साथ काँलेज की पढाई पूरी होती है।
दर असल शुरू से गाँव के परिवेश में रहकर शहर आये लड़को को कई दैनिक परेशानियों से गुजरना होता है जिसमें भोजन कपडे बुक फीस कई ऐसी चीजे है जिसकी परेशानी से लड़कर वह परिपक्वता हासिल करता है उसमें परिस्थिति से लड़ने और समयानुकूल कार्य करने की आदत बन जाती है जो उसके सफलता का मार्ग बनाता है जब वह हाईयर एजुकेशन प्राप्त कर लेता है तो एक परिपक्व मानसिकता के साथ बडा से बडा कम्पीटीशन फेश कर अव्वल दर्जे से पास करता है।यही कारण है कि शहर के लडके/लडकियों के मुकाबले गाँव की सफलता दर ज्यादा है वैसे भी गाँव ने ही अव्वल दर्जे के सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधिकारी, सेना के अधिकारी जवान देश को दिए है जो निरंतर जारी है।इनमें देशभक्ति का जज्वा कूटकूट कर भरा होता है।इसलिए तो कहा गया है ग्रामीण लोक संस्कृति और उसका ज्ञान ही हमारी पूँजी है।

आशुतोष झा

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