कविता

साधना

मन-चिंतन, मन-बोध से
प्रस्फुटित होता अन्तर्मन
अमृत वेला में
मन वृत्ति निस्तव्ध एकाकार मे लीन होती
तब ध्यान की एकाग्रता
ईश के निराकार अस्तित्व में साकार हो उठती
हजारों सूर्य मण्डल की लालिमा
मस्तिष्क पटल पर
शांत आभा, नव चेतना लिए
जीवन के जन्म मरन से मुक्त
एकाकी पथ पर अग्रसर
महान आत्मा में विलय होती ठहर जाती
एक सुखद आभास लिए
नि:शब्द, शून्य, गम्भीर तब तक
जब तक डोर से डोर जुड़ी है
तार से तार बंधी है
धुन से धुन मिली है।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. Sanyalshivraj@gmail.com M.no. 9418063995