गीत/नवगीत

रंगे सियारों की टोली

सूरत बदली, सीरत बदली, बदल गयी है बोली
चौराहों पर रंगे सियारों की, जब निकली टोली।

बने चोर मौसेरे भाई, दुश्मन थे जो पुराने
बिन मौसम दादुर के वंशज, निकल पड़े टर्राने
देते हैं ना साथ वतन का, आज बने हमजोली
सूरत बदली, सीरत बदली, बदल गयी है बोली।1।

रंग बदल कर गिरगिट दुबके, बांबी में साँपों की
आस्तीन से ज़हर उगलती, सेना है बापों की,
एक कलम ने गद्दारों की, पोल सभी है खोली
सूरत बदली, सीरत बदली, बदल गयी है बोली।2।

आँखोंवाले बने हैं अंधे, गूँगे शोर मचाते
घर के भेदी, बड़ी-बड़ी लंकाओं को खा जाते
देखो रंग सियासत के जब भरे मियाँजी झोली
सूरत बदली, सीरत बदली, बदल गयी है बोली।3।

— शरद सुनेरी