हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – कोरोना से डर नहीं लगता है साहब ! 

           एक फ़िल्मी गाने के बोल हैं , “ एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है ऽऽऽऽऽ। “ उसी तरह एक अदृश्य चीनी वायरस ने सारे संसार को नपुंसक बना कर रख दिया है। चीनी वायरस के चलते हमारे पी एम ने 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया है। जनता में अफरा – तफरी का माहौल है। ज़्यादातर लोग डरे, सहमे से हैं। जबकि मैं बिंदास हूं। निडर, निर्भय हूं। अरे भाई, जो दुश्मन दिखाई न दे, उससे डरना, घबराना कैसा ? क्यों ? किस लिए ?
    सोशल मीडिया पर किसी ने कोरोना का मतलब फैला दिया ( को = कोई भी , रो = रोड पर , ना = ना निकले )। जिस किसी महानुभाव ने कोरोना का अर्थ लोगों को समझाया है, लोग उसकी प्रशंसा के पुल बांध रहे हैं। अरे भाई, हम रोड पर क्यों न घूमें ? तुम होते कौन हो, हमें रोकने, टोकने वाले। रोड क्या तुम्हारे बाप का है ? हम तो घूमेंगे सनम , सब को साथ लेकर घूमेंगे। एक दूसरे सज्जन ( दुर्जन ) ने अब अलग ही अर्थ निकाला है। कोराना मतलब कोई रोने वाला भी नहीं रहेगा। दाद देनी पड़ेगी, इनके ख़ुराफ़ात दिमाग़ को। इनके ( अ ) विचारों में नकारात्मकता की बू आती है। हम हिंदुस्तानी मुसीबतों, मुश्किलों में महोत्सव मनाने में माहिर हैं। जनता कर्फ्यू के दौरान घर पर रहते हुए 5 मिनट के लिए सफाई, स्वास्थ्य, पुलिस कर्मियों को धन्यवाद कहने के लिए ताली, थाली आदि बजाएं। हमारे देशवासियों का उत्साह देखिए, कई लोग ढ़ोल, ताशे, शंख आदि बजाते हुए सड़कों पर नाचने, झूमने लगे। ऐसा दृश्य सिर्फ़ भारत में ही दिखेगा। चीनी वायरस पर सबसे ज़्यादा टिक टॉक भारत देश में ही बने हैं। यह बहुत बड़ा किर्तिमान है, जिसे गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में दर्ज करवाने की ज़रूरत है। यह हम हिंदुस्तानीयों की जिंदा दिली को दर्शाता है। गंभीर, जानलेवा बीमारी पर भी हम हास्य – व्यंग कर सकते हैं। इससे अच्छा उदाहरण दुनिया में शायद ही कहीं और मिले।
      अब फिर अपनी घड़ी की सुई को डर की तरफ सरकाते हैं। बचपन में हमें सिखाया जाता था कि माता – पिता से डरो। बहन, भाई बड़े हों तो उनसे भी डरो। जवानी में जब शादी हुई तो पत्नी हम पर हावी होने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैंने उसकी दाल गलने न दी। जिस तरह युद्ध भूमी में अर्जुन को श्रीकृष्ण जी ने अपना विराट,  विशाल रूप दिखा कर अर्जुन को अचंभित, अभिभूत किया था , ठीक उसी तरह मैंने पत्नी को असली पुरुषत्व दिखाया तो वो भयभीत, भ्रमित हो उठी। मेरी हां में हां मिलाने के अलावा उसके पास कोई ऑप्शन ही नहीं बचा था। अब तो मेरे हाथ दूसरा हथियार लगा है , चीनी वायरस का। यह फॉर्म्यूला मेरे लिए संजीवनी बूटी के समान है।
         रोज़ाना सुबह देरी से उठना, अंगड़ाइयां, उबासियां लेते हुए आराम से उठता हूं। ब्रश करने के बाद चाय बेड पर ही मिलने लगी है। अख़बार बंद होने के कारण, मोबाइल के टचसक्रीन पर उंगलियों को इधर – उधर घुमाना, थोड़ी देर बाद गर्मा – गरम नाश्ता नसीब होता है। सुबह से लेकर रात तक खाना – पीना, सुनना – सुनाना, समझना – समझाना यही दिनचर्या बन गयी है। शाम को जब अंधेरा गहराने लगता है, तो दो दोस्तों ( शराब की बोतल और नमकीन पैकेट ) के साथ टैरेस पर जम जाता हूं। खूब जमती है, जब हम मिल बैठते हैं तीन यार ! मोबाइल पर सिर्फ़ एक ही गाना बार – बार सुनता हूं , “ …… आज गा लो , मुस्कुरा लो, महफ़िलें सजा लो। क्या जानें कल साथी छूट जाए। जीवन की डोर बड़ी कमज़ोर यारो ऽऽऽऽऽ। इस लॉकडाउन के 21 दिनों के गोल्डन चांस को मैं नींबू की तरह निचोड़ कर पीना चाहता हूं। संकट की इस घड़ी में मेरा सच्चा साथी सोमरस ही तो है। अभिनेता हृषी कपूर ने भी मदिरा के महत्व की वकालत करते हुए सरकार को सुनहरा सुझाव दिया है , शाम के समय कुछ देर के लिए शराब की दुकानें खुली रखने का । उनका तर्क है कि इससे लोग तनावग्रस्त नहीं होंगे। रिलैक्स महसूस करेंगे। कसम से, मेरी आंखें भर आयी। ये सलब्रेटी भी हमारे बारें में कितना भला सोचते हैं। दूसरी ओर मेरी पत्नी है,  जिसे  मेरा शराब पीना पसंद नहीं। सामने बोलने से कताराती, डरती है। इसलिए पीठ पीछे अपने भाग्य को कोसती रहती है। उसका सपना था कि उसका पति, उसके पिता जैसा आज्ञाकारी हो, जो अपनी पत्नी की हर बात मानता है। मगर उसका सपना, अपना न बन सका।
          अब दुबारा चीनी वायरस की तरफ मुड़ते हैं। हिंदी फ़िल्मों के एक स्टार ने कहा है कि मखी से भी वायरस होता है। लो, कर लो बात ! सरकारी चैनलों को छोड़कर, लगभग हर निजी चैनल बार – बार कोरोना की ख़बरें दिखाकर देश के नागरिकों को हैरान – परेशान कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन्होंने देश के दुश्मनों से सुपारी ले रखी है भारत देश की जनता को डरा, डरा कर मारने की। अब अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप को ही लीजिए, इस व्यंग  को लिखने तक उन्होंने अमरीका को लॉकडाउन करने से मना कर दिया है। उनका आत्मविश्वास है कि हम चीनी वायरस को यूं ही चारों खाने चित कर देंगे। यही नहीं, बाकी देश इस चीनी वायरस पर खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं, वहीं इस जांबाज़,  जिगरबाज़ ट्रंप ने चीन देश पर करोड़ों रुपयों का केस ढोंक दिया है। कोरोना को दुनिया के बाकी देशों में जो इज़्ज़त, शोहरत, दहशत मिली थी , उसकी मिट्टी पलीद हम हिंदुस्तानी ही कर सकते हैं। जनता कर्फ्यू, सोशल डिस्टंस,  लॉकडाउन, सैनिटाइजेशन, क्वारंटाइन,  वायरस जैसे शब्द सुनकर मेरे कान पक गए हैं। मेरी नज़र में ये महत्वहीन, तर्कहीन शब्द हैं। चीनी वायरस से डरने वालों से अनुरोध है कि वो फ़िल्मी गाना गुनगुनाएं, “ डर लगे तो गाना गा। ऐसे भी हां , वैसे भी हां  ऽऽऽऽऽ। “। बोलो, कोरोना प्यार है !
-– अशोक वाधवाणी 

अशोक वाधवाणी

पेशे से कारोबारी। शौकिया लेखन। लेखन की शुरूआत दैनिक ' नवभारत ‘ , मुंबई ( २००७ ) से। एक आलेख और कई लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ नवभारत टाइम्स ‘, मुंबई में दो व्यंग्य प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘ कथाबिंब ‘, मुंबई में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ आज का आनंद ‘ , पुणे ( महाराष्ट्र ) और ‘ गर्दभराग ‘ ( उज्जैन, म. प्र. ) में कई व्यंग, तुकबंदी, पैरोड़ी प्रकाशित। दैनिक ‘ नवज्योति ‘ ( जयपुर, राजस्थान ) में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ भास्कर ‘ के ‘ अहा! ज़िंदगी ‘ परिशिष्ट में संस्मरण और ‘ मधुरिमा ‘ में एक लघुकथा प्रकाशित। मासिक ‘ शुभ तारिका ‘, अम्बाला छावनी ( हरियाणा ) में व्यंग कहानी प्रकाशित। कोल्हापुर, महाराष्ट्र से प्रकाशित ‘ लोकमत समाचार ‘ में २००९ से २०१४ तक विभिन्न विधाओं में नियमित लेखन। मासिक ‘ सत्य की मशाल ‘, ( भोपाल, म. प्र. ) में चार लघुकथाएं प्रकाशित। जोधपुर, जयपुर, रायपुर, जबलपुर, नागपुर, दिल्ली शहरों से सिंधी समुदाय द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्र – पत्रिकाओं में सतत लेखन। पता- ओम इमिटेशन ज्युलरी, सुरभि बार के सामने, निकट सिटी बस स्टैंड, पो : गांधी नगर – ४१६११९, जि : कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८, ईमेल ashok.wadhwani57@gmail.com