संस्मरण

एक हैं अम्मा

अम्मा प्रणाम। जब तक तुम मेरे साथ रही तब तक मुझे मदर्स डे की जानकारी नहीं थी। तुमने  2010 में देह त्याग कर इस असार सन्सार को अलविदा कह दिया। दस वर्ष हो गए पर में अभी तक नहीं कह सका कि एक अम्मा थीं। मुझे महसूस होता है कि तुम अभी भी मेरे साथ ही हो। दुख में तुम ही तो याद आती हो। सन्सकार अनुशासन नियम समय का सदुपयोग कर्तव्य पालन चरित्र निष्कलंक रखना माता पिता के प्रत्येक आदेश का पालन करना यथाशक्ति तन मन धन से हर अपने पराये की सेवा करते रहना शिक्षा प्राप्त करते रहना बुरी आदतों से दूर रहना शालीन व्यवहार रखना इत्यादि अनेक पाठ तुम मुझे अनवरत सिखाने का प्रयास करती रही। जीवन के इस अन्तिम चरण में मुझे यह स्वीकार करने में कोई सन्कोच नहीं है कि मैं कुछ एक का ही अपने जीवन में पालन कर सका। अब सिर पर तुम्हारा आशीर्वाद देने वाला हाथ नहीं है पर फिर भी तुम्हारा कहना मानकर सादगी से जीवन जीने का एक प्रयास तो कर ही रहा हूँ। 10 मई 2020 को इस वर्ष के मदर्स डे पर तुम्हें अपने साथ ही महसूस कर रहा हूँ। शरीर से चाहे नहीं पर मन से माता जीवन भर सन्तान के साथ सदैव रहती है। तुम्हारे इस नालायक कुपुत्र का प्रयास रहेगा कि तुम्हारी सीख का पालन करता रहकर अपने जीवन को सरल सहज सार्थक बनाए रख सकूँ। एक हैं अम्मा एवं मेरी अन्तिम श्वास तक मेरी रक्षा मेरे प्रत्येक सन्कट में करती रह कर मेरे अश्रु को समझ कर मेरे दुख कम करती रहेगी। प्रणाम अम्मा।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी