गीत/नवगीत

ताकत का आभास

बँधी बुहारी से हो हमको, शक्ति भरा अहसास ।
मिलकर रहते वे ही करते, ताकत का आभास ।।

सबने मिलकर ही सागर पर, किया सेतु निर्माण ।
ऐसे ही सन्देश बताते, हमको वेद पुराण ।।
रहते जो संयुक्त रूप से, भरे आत्म विश्वास ।
मिलकर रहते वे ही करते, ताकत का आभास ।।

सदा आत्मबल से ही मानव, पार करें मझधार ।
बने सदा सामर्थ्यवान ही, दलबल का सरदार ।।
भरा पड़ा है अखिल विश्व में, इसका तो इतिहास ।
मिलकर रहते वे ही करते, ताकत का आभास ।।

सरल नीर ही सदा तोड़ता, पत्थर तीव्र बहाव ।
उसे नही कमजोर मानिये, मित्रों सरल स्वभाव ।।
क्षमा वही करता निर्बल को,जज्बा जिसके पास ।
मिलकर रहते वे ही करते, ताकत का आभास ।।

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- lpladiwala@gmail.com पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)