गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ले कितनी दूर जाओगे अब तिश्नगी रख दो,
अपने से थोड़ी दूर अपनी बेबसी रख दो‌।

जीने के लिए सांसों का सौदा करें चलो,
चंद सांसें ही सांसों के लिए पेशगी रख दो।

कब तक ये सितारे फ़लक पे तन्हा रहेगें,
इस शब में इनके साथ चांद, चांदनी रख दो।

कल रात मेरे पास आके मोत ये बोली,
कुछ रोज मेरे पास रहन ज़िंदगी रख दो।

मां- बाप के ही रुप में भगवान मिलेगें,
कदमों में इनके अपनी सारी बंदगी रख दो।

हैं नकली मुहब्बत, ये मीत मतलबी यहां,
छोड़ो दीवानापन, कहीं दीवानगी रख दो।

जो ढूंढ सको ‘जय’ तो इस भीड़ में से इक,
लाकर के मेरे सामने इक आदमी रख दो।

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’
हरदा म प्र
तिश्नगी= प्रयास
पेशगी= बताना, एडवांस
फ़लक= आसमान
बंदगी= पूजा
रहने= गिरवी, बंधक

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से